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तिलीयपण्णत्ती
[ गाथा : ७७-७६ अनीकदेवोंका वर्णन सत्ताणीया होंति हु पत्तेषक सत्त सत्त कक्ख-जुदा ।
पढमा ससमाण-समा तद्गुणा चरम-कक्खंतं ॥७७।।
अर्थ:-सात अनीकोंमें से प्रत्येक अनीक सात-सात कक्षाओंसे युक्त होती हैं। उनमेंसे प्रथम कक्षाका प्रमाण अपने-अपने सामानिक देवोंके बराबर तथा इसके प्रागे अन्तिम कक्षातक उत्तरोत्तर प्रथम कक्षासे दूना-दूना प्रमाण होता गया है ।।७७।।
विशेषार्थ :-एक एक इन्द्रके पास सात-सात अनीक ( सेना या फौज ) होती हैं। प्रत्येक अनीककी सात-सात कक्षाएं होती हैं । प्रथम कक्षामें अनीक देवोंका प्रमाण अपने अपने सामानिक देवोंकी संख्या सदृश, पश्चात् दूना-दूना होता जाता है ।
असुरम्मि महिस-तुरगा रह-करिणो' तह पदाति-गंधध्वो । णच्चणया एदाणं महत्तरा छम्महत्तरी एक्का ॥७॥
अर्थ :-असुरकुमारोंमें महिष, घोडा, रथ, हाथी, पादचारी, गन्धर्व और नर्तकी, ये सात अनीकें होती हैं । इनके छह महत्तर (प्रधान देव) और एक महत्तरी ( प्रधान देवी ) होती हैं ॥७८।।
णावा गरड-गइंदा मयरुवा खग्गि-सोह-सिधिकस्सा ।
णागादीणं पढमाणीया बिदियान असुरं वा ।।७।। अर्थ :-नागकुमारादिकोंके क्रमश: नाव, गरुड, गजेन्द्र, मगर, ऊँट, गैंडा (खड्गी), सिंह, शिविका और अश्व, ये प्रथम अनीक होती हैं, शेष द्वितीयादि अनीकें असुरकुमारोंके ही सदृश होती हैं ॥७॥
विशेषार्थ :-दसों भवनवासी देवोंमें इसप्रकार अनीकें होती हैं१. असुरकुमार-महिष, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नर्तकी । २. नागकुमार-नाव, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नर्तको । ३. सुपर्णकुमार-गरुड, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व पोर नतंकी।
१. ब. रहकरणो। २ द.ज. उ. स्नग्ग ।