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१० पंक्तियां और प्रत्येक पंक्ति में ४४ - ४५ वर्ण हैं। काली स्याही का प्रयोग किया गया है। प्रति पूर्णतः सुरक्षित और अच्छी दशा में है ।
यह बम्बई प्रति की ही नकल है क्योंकि वहीं प्रशस्ति ज्यों की त्यों लिखी गई है । लिपिकाल का भी अन्तर नहीं दिया गया है ।
सूडबिद्रो की प्रतियाँ :
ज्ञानयोगी स्वस्तिश्री भट्टारक चारुकीति पण्डिताचार्यवर्य स्वामीजी के सौजन्य से श्रीमती रमारानी जंन शोधसंस्थान, श्री दिगम्बर जैन मठ, मूडबिद्री से हमें तिलोय पण्णत्ती की हस्तलिखित कानड़ी प्रतियों से पं० देवकुमारजी जैन शास्त्री ने पाठान्तर भिजवाए थे। उन प्रतियों का परिचय भी उन्होंने लिख भेजा है, जो इस प्रकार है-
प्रान्तीय ताडपत्रीय ग्रन्थसूची पृ० सं० १७० - १७१ विषय : लोकविज्ञान
ग्रन्थ सं० ४६८ :
(१) तिलोयपण्णत्ति : [ त्रिलोक प्रज्ञप्ति ] - आचार्य यतिवृषभ । पत्र सं० १५१ । प्रतिपत्र पंक्ति-६ । प्रक्षर प्रतिपंक्ति ६६ । लिपि कन्नड़ । भाषा प्राकृत विषय लोकविज्ञान | अपूर्ण प्रति । शुद्ध है; जीर्णदशा है। इसमें संदृष्टियों बहुत सुन्दर एवं स्पष्ट है । टीका नहीं है ।
ॐ नमः सिद्धमर्हतम् ॥ श्री सरस्वत्यं नमः || श्री गणेशाय नमः || श्री नित्यविशालकीर्तिमुदये नमः || इस प्रकार के मंगलाचरण से ग्रन्थारम्भ होता है ।
इस प्रति के उपलब्ध सभी ताड़पत्रों के पाठभेद भेजने के बाद पण्डितजी ने लिखा है"यहां तक मुद्रित (शोलापुर ) तिलोयपण्णन्ति भाग १ का पाठान्तर कार्य समाप्त होता है। मुद्रित तिलोपत्ति भाग-२ में ताड़पत्र प्रति पूर्ण नहीं है, केवल नं० १९ से ४३ तक २५ ताड़पत्र मात्र मिलते हैं। शायद बाकी ताड़पत्र लुप्त, खण्डित या अन्य ग्रन्थों के साथ मिल गये हों । यह खोज करने की चीज है ।"
ग्रन्थ सं० ६४३ :
(२) तिलोयपष्णति ( त्रिलोकप्रज्ञप्ति) : प्राचार्य यतिवृषभ । पत्र संख्या ८८ पंक्तिप्रतिपत्र ७ । अक्षर प्रतिपंक्ति ४० । लिपि कन्नड़ भाषा प्राकृत । तिलोपपत्ति का एक विभाग मात्र इसमें है । शुद्ध एवं सामान्य प्रति है। इसमें भी संदृष्टियां हैं।