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गाथा : २८५ ]
पढमो महाहियारो
[ १३१
अर्थ :- आठवीं पृथिवीके प्रवस्तन भाग में वातावरुद्ध क्षेत्रके घनफल को कहते हैं- प्राठवीं पृथिवी के प्रस्तन भाग में वातावरुद्ध क्षेत्र ७ राजू लम्बा, एक राजू विस्तार युक्त और साठ हजार योजन बाहुल्य वाला है । इसका चनफल अपने बाल्यके सातवें भाग बाहुल्य प्रसारण जगत्प्रतर होता है ।
विशेषार्थ :- आठवीं पृथिवीके प्रध्वस्तन - पवनोंका विस्तार एक राजू, लम्बाई ७ राजू और मोटाई ६०००० योजन है । अतः १ x x 10000x1080 अर्थात् ४२०४९ घनफल
X
६००००
प्राप्त हुआ ।
आठ पृथिवियों के सम्पूर्ण घनफलों का योग
एवं 'सव्यमेगट्ठ मेलाविदे येत्तियं होदि । १०१२०००० ।
४६
॥ एवं वादावरुद्ध खेत- घरणफलं समत्तं ||
अर्थ :- इन सबको इकट्टा मिलानेपर कुल घनफल इसप्रकार होता है :४९×६००००० + ४९९०००००० + ४१३५०००० + ४१०००० + ४११६ oodd + ४१×२०४००००० : ४९२५०००० + ४९९४३०००० |
0000
-:
नोट :- आठ पृथिवियों के उपर्युक्त ( घनफल निकालते समय ) घनफल को जगत्प्रतर स्वरूप करने हेतु सर्वत्र का गुणा किया गया है।
उपर्युक्त घनफलों में अंश का ( ऊपर वाला ) ४६ जगत्प्रतर स्वरूप है, अतः उसे अन्यत्र स्थापित कर देनेपर घनफलोंका स्वरूप इसप्रकार बनता है
।
१. द. ब. सब्बमेगं पमेलाविये ।
+
४६ × ४२०००० + 34800+ [११४०००० $400000 + 10100 +0000 २५०००००० + ४२१४६ X 103०० श्रर्थात् जगत्प्रतर x १०१३३००० या =
"
घनफल सम्पूर्ण ( पाठों ) पृथिवियों के स्तन भागका प्राप्त हुआ ।
इसप्रकार वातावरुद्ध क्षेत्रके घनफलका वर्णन समाप्त हुआ ।
लोक स्थित श्राठों पृथिवियों के वायुमण्डलका चित्रण इसप्रकार है
२२२०००० -77
+
[१०९२०००० ४स