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१२६ ] होंगे? इसप्रकार राशिक करने पर गई है। ( त्रिलोकसार गाथा १३८ ) ।
तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २८५ .x:५७५-११ योजन मोटाई लोकके अग्रभागमें कही
चन
." + १ राजू दातालयबादाम
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02AY चनफल
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पवनोंसे रुद्ध समस्त क्षेत्रके घनफलोंका योग एवं 'सव्वमेगस्थ मेलाविवे चउवीस-कोडि-समहिय-सहस्स-कोडीनो एगूणवीसलक्ख-तेसोदि-सहस्स-चउसव-सत्तासीदि-जोयणाणं णव-सहस्स-सत्त-सय-सट्टि-रूवाहियलक्खाए अहिदेग-भाग-बाहल्लं जगपदरं होदि । = १०२४१९८३४८७ ।
१०६७६० प्रय :-इन सबको इकट्ठा करके मिला देनेपर एक हजार चौबीस करोड़, उन्नीस लाख, तयासीहजार, चारसौ सत्तासी योजनोंमें एक लाख नौहजार सातसौ साठका भाग देनेपर लब्ध एक भाग बाल्यप्रमाण जगत्प्रतर होता है ।
१.ब. सध्यमगं पथमेलाबिदे, द. ज.ठ, सबमेगं पमेलाविदे।