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गाथा : २८५ ] पढमो महाहियारो
[ १२१ पुणो एग-रज्जुस्सेधेण सत्त-रज्मू-अायामेण सट्ठिजोयण सहस्स-बाहल्लेग बोसु पासेसुठिद-वाद-खेत्त बुद्धोए' पुध करिय जग-पदर-पमारणेण णिबद्ध बीससहस्साहियजोयण-लक्खस्स सत्त-भाग-बाहल्लं जग-पवरं होदि ।=१२०००० ।
अर्थ :-अनन्तर एक (3) राजू उत्सेध, सात राजू पायाम और साठ हजार योजन बाहल्य वाले वातबलयकी अपेक्षा दोनों पार्श्व-भागों में स्थित वातक्षेत्रको बुद्धिसे अलग करके जगत्प्रतर प्रमाणसे सम्बद्ध करनेपर सातसे भाजित एक लाख बीस हजार योजन जगत्प्रतर होता है ।
विशेषार्थ :- अधोलोकके एक राजू ऊपरके पार्श्वभागोंतक तीनों पवनोंकी ऊँचाई एक-राजू, आयाम ७ राजू और मोटाई ६० हजार योजन है। इनका परस्पर गुणा करनेसे (४६x६०००० योजन )= ४२x६० हजार योजन एक पार्श्वभागका धनफल प्राप्त होता है । दोनों पार्श्वभागोंका घनफल निकालने हेतु दोसे गुणित करनेपर ( १x६० हजार x ३)- ( अर्थात् जमरप्रतर ) x १२०:१० योजन मनमल पाप्त होता है । यथा
-45200-ram पर
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७
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तं पुष्पिल्लक्खेत्तस्सुवरि ठिदे चालीस-जोयण-सहस्साहिय-पंचण्हं लक्खाणं सत्तभाग-बाहल्लं जग-पदरं होदि ।-५४०००० ।
१. द, क. ज, क. बुधि पुदक्करिय, ब, बुड्डि पुदक्करिस ।