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तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा २७६
अर्थ :- सातवें नरक में पृथिवीके पार्श्वभाग में क्रमशः इन तीनों वातवलयोंकी मोटाई सात, पांच और चार योजन तथा इसके ऊपर तिर्यग्लोक ( मध्यलोक ) के पार्श्वभाग में पांच, चार और तीन योजन प्रमाण है ॥ २७४ ॥
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अर्थ :- इसके आगे तीनों वायुश्रोंकी मोटाई ब्रह्मस्वर्गके पार्श्वभाग में क्रमश: सात, पाँच और चार योजन प्रमाण तथा ऊर्ध्वलोकके अन्त ( पार्श्वभाग ) में पांच, चार और तीन योजन प्रमाण है || २७५ ।।
विशेषायें :- दोनों पार्श्वभागों में एक राजुके ऊपर सप्तमपृथिवीके निकट धनोदधिवातवलय सप्त योजन, घनवातवलय पांच योजन और तनुवातवलय चार योजन मोटाईवाले हैं । इस सप्तम पृथिवीके कम हुए सिमीपदी रावलय क्रमशः पाँच, चार और तीन योजन बाहुल्य वाले तथा यहाँ से ब्रह्मलोक पर्यन्त क्रमशः बढ़ते हुए सात, पाँच और चार योजन बाल्य वाले हो जाते हैं तथा ब्रह्मलोकके क्रमानुसार होन होते हुए तीनों बातवलय ऊर्ध्वलोकके निकट तिर्यग्लोक सदृश पाँच, चार और तीन योजन बाहृल्य वाले हो जाते हैं ।
कोस- गमक्क - कोसं किंचूरोषकं च लोय- सिहरस्मि । ऊण-पमारणं दंडा चउस्सया पंचवीस-जुदा ॥२७६॥
। २ को० | १ को० । १५७५ दंड ।
अर्थ :- लोकके शिखरपर उक्त तीनों वातवलयोंका बाहुल्य क्रमश: दो कोस, एक कोस और कुछ कम एक कोस है । यहाँ तनुत्रातवलयकी मोटाई जो एक कोससे कुछ कम बतलाई है, उस कमीका प्रमाण चारसौ पच्चीस धनुष है | १२७६ ।।
विशेषार्थ :- लोकके अग्रभागपर घनोदधिवातवलयकी मोटाई २ कोस, घनवातवलयकी एक कोस और तनुवात वलयको ४२५ धनुष कम एक कोस अर्थात् १५७५ धनुष प्रमाण है ।
लोकके सम्पूर्ण वातवलयोंको प्रदर्शित करनेवाला चित्र
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