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पाक : १६६]
मोहायिारो उसमें सातका भाग देनेपर जो लब्ध पाये उतना असनालीसे युक्त पूर्ण अधोलोकका धनफल समझना चाहिए ॥१६॥
विशेषार्थ :---३४३ x २७:४६=१८६ घनफल, बमनालीको छोड़कर शेष अधोलोकका कहा गया है और सम्पूर्ण अधोलोकका घनफल ३४३ ४४७=१६६ घनराजू कहा गया है।
ऊर्ध्वलोकके आकारको अधोलोक स्वरूप करने की प्रक्रिया एवं प्राकृति
मुरजायारं उड्ढं खेत्तं छत्तूण मेलिई सयलं । पुन्वावरेण जायदि वेत्तासण-सरिस-संठाणं' ।।१६६॥
प्रर्थ:-मृदंगके आकारवाला सम्पूर्ण अवलोक है। उसे छेदकर एवं मिलाकर पूर्वपश्चिमसे बेत्रासनके सदृश अधोलोकका आकार बन जाता है ॥१६६।।
विशेषार्थ :-अधोलोकका स्वाभाविक प्राकार वेत्रासन सदृश अर्थात् नीचे चौड़ा और ऊपर सँकरा है, किन्तु इस गाथामें मृदंगाकार ऊध्वंलोकको छेदकर इस क्रमसे मिलाना चाहिए कि वह भी अधोलोकके सदृश वेत्रासनाकार बन जावे । यथा --
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- - १. द ब. ज.क.ठ. संठाणा ।