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________________ १०६ निर्जराका वर्णन प्रदेशबन्धका स्वरूप पुण्यकर्मको प्रकृतियों पापकर्म की प्रकृतियाँ संवर कमर्शक : नवम अध्याय २७५-२७६ २७६-२७७ मिथ्यात्व आदि गुण स्थानोंमें किन किन कर्म प्रकृतियों का संवर होता है गुणस्थानोंका स्वरूप और स्वरूप विनयके चार भेद वैयावृत्य के देश व २७७ २७८ रामय संबर के कारण संबर और निर्जग का कारण तप गुप्तिका स्वरूप समितिका स्वरूप और भंद २८२-२८४ धर्मके भेद और स्वरूप २८४-२८५ बारह भावनाओंका स्वरूप २८६-२९० परीषद सहन का उपदेश २९१ के भेद और स्वरूप २९१-९९५ किम गुणस्थान में कितनी परोषह होती हैं किस कर्मके उदयसे कौनसी परी होती है। जीवक एक परी हो सकती है २९१ चारित्रके भेद और स्वरूप २२९-३०० बाह्यतपके छह भेद ३००-३०१ अंतरंगतपके छह भेद अन्तरंगतपके प्रभेद प्रायश्चितके नौ मंद और एक साथ कितनी आचार्य श्री सुविधिसागर स्वामी २८३ २८३ २७९-२८० ४७९-८० । शुक्लध्यानके स्वामी शुक्लध्यानके भेद २९८-२९९ २८१.२८२ ४८०-८१ २८२ ३०१ ܀ ܝ ܕ विषयसूची 59'9 ܕ ܘ ܕ ܝܐ ܘ ܕ ૩૭ ४७८ ४७८ २९६-२९८ ४८१-४९१ ३०१-३०४ ३०४ ८८२ | ४८९ ፈረ ४८३ स्वाध्याय के पांच भेद | व्युत्सर्गके दो 'मैद ३०४-३०५ २०५ ध्यानका स्वरूप और समय ३०५ ३०६ ध्यान के भेद ३०६ आत्तंध्यानके भेद और स्वरूप o'g ३०८ रौद्रयानका स्वरूप और स्वामी ३०८ धर्म्यध्यानका स्वरूप ३०९ ३१० १० ४८३-८४ | ४८४-८६ . किस शुक्लध्यान में कौनसा बोग होता है ४९१ ४९९ ४९३ ४९३ ४९४ प्रथम और द्वितीय शुक्लध्यानोंकी विशेषता वितर्कका लक्षण वीचारका लक्षण ! निन्य के भेद ४८६ ४८७-८९ । | पुलाक आदि निर्ग्रन्थोंमें परपर भेंदके कारण सम्यग्वष्टि आदि जीवोमं निर्जराकी विशेषता | ४०२ | मुक्तजीव किन किन अ साधारण भावोंका नाश हो जाता है ३१-३११ मुक्त होने के बाद जीव ऊर्ध्व गमन करता है ६११ ३११ ३१२-३१३ ४९४ ठहर जाता है. ४९५ मुक्तजीवों में परस्पर द व्यबहारके कारण ४९५ ३१३-३१४ ३१४-३१५ दशम अध्याय केवलज्ञान उत्पत्तिके कारण ३१८-३१९. ५०६ मोक्षका स्वरूप और कारण ३१९-३२० ५०६-५०० ३२०-२२१ ५२१ ऊर्ध्वगमन के हेतु ३२१-३२२ ऊर्ध्वगमन के विषयमं दृष्टान्त ३२२-३२३ | मुक्तजीव लोकके अन्तमें ही क्यों ४९३ ४९६ ४९७ *४९७ ४९८ ४९८ ४९९ ४९९ ५०० ५०० ५०० ३१५-३१७ ५०४-५०५ ३२३ ५०० ५०१ ५०१ ५०२ ५०३ ५०८ ५०द्र ५०८ ५०९ ३२३-३२५ ५०९-५११
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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