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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
____ तदुत्तरप्रकृतिवदुत्तरोत्तरप्रकृतीनामपि प्रकृतिबंधव्यपदेशात् सामान्यतो विशेषतश्च प्रेकृतिबंधः स्थित्यादिबंधापेक्षयान्य एवानेकधोक्तः । तथा च
उस मूल प्रकृतिबंध की उत्तरप्रकृतियों के बंध समान उत्तरोत्तर प्रकृतियों का बंध भी प्रकृतिबन्ध शब्द करके ही कह दिया गया है क्योंकि सामान्यरूप से जो मूल प्रकृतिबंध हैं, वही विशेषरूप से उत्तरप्रकृतिबंध और उत्तरोत्तरप्रकृतिबंध हैं। विशेषों से रहित सामान्य कोई पदार्थ नहीं है । यह पहिला प्रकृतिबध तो स्थितिबंध आदि की अपेक्षा करके अन्य ही है जो कि उक्त सूत्रों द्वारा कह दिया गया है। समान जातिवाले कार्योंको करनेको अपेक्षा से ज्ञानावरण कर्म और नामकर्म के असंख्यात भेद हैं जीवों में ज्ञान के असंख्यात प्रकार पाये जाते हैं। इसी प्रकार नामकर्म के भी असंख्यात भेद हैं। नामकर्म के द्वारा सजातीय असंख्यात प्रकार के कार्य हो रहे समझ में आ जाते हैं। हाँ, अन्य छह कर्मों के संख्यात भेद हैं उनके अरबों, खरबों, संख्यात जाति वाले, अनेक भेद प्रतीत हो रहे हैं । तिस हो प्रकार से व्यवस्थित हो रहे सिद्धान्त को ग्रन्थकार अग्रिम वार्तिक द्वारा कहें देते हैं।
यावतामनुभवोस्तु फलानां, दृष्टहेतुघटनाच्च जनानां । तावतीह गणना प्रकृतीस्ताः, कर्मणामनुमिनोतु महात्मा ॥३॥
देखे जा रहे हेतुओं की घटना से जितने भी फल यानी कार्यों के हो जाने का मनुष्यों को अनुभव हो रहा है यहां उतनी ही कर्मों की उन प्रकृतियों का महात्मा, पण्डित, अनुमान कर लो। अर्थात् कर्मों की उत्तरोत्तर प्रकृतियां अनेकानेक हैं, जितने कार्यों का अनुभव हो रहा है उतने अतीन्द्रिय कारण हो रहे कर्मों का अनुमान सुलभता से कर लिया जाता है। शेष कर्मों को आगम से जान लिया जाय । " दृष्टहेत्वघटनात्" ऐसा पाठ सुन्दर दीखता है, देखे जा रहे हेतुओं से जो कार्य बन रहे हैं उनके कारण वे हैं। छत्र से छाया हो जाती है अग्नि से धुआं उपज जाता है किन्तु जहां देखे जा रहे हेतुओं से कार्य घटित नहीं हो पाता है दृष्टकारणों का व्यभिचार दोष दोखता है, पढने में परिश्रम करने वाले फेल हो जाते हैं । औषधि करते हुये भी रोग बढ जाता है, धर्म करते हुये भी क्लेश उठा रहे हैं, कतिपय पापी जोव आनन्द (मौज) कर रहे हैं, इस प्रकार दृष्टहेतुओं से घटित नहीं होने वाले जितने भी कार्यों का अनुभव हो रहा है उतनी संख्यावाली कर्मप्रकृतियों की गिनती कर ली जाय, विस्तररुचिवाले शिष्यों के लिये लम्बा, चौडा क्षेत्र पड़ा हुआ है । युक्तियों का भी टोटा नहीं है।