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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
श्लोक द्वारा भगवान्को विशेषरूपेण न्यायशास्त्रका करनेवाला कहा गया है । मोक्ष तत्त्वमें दार्शनिकोंके अनेक विवाद पडे हुये हैं। जो कि प्रथम सूत्रकी व्याख्या अनुसार कतिपय जाने जा सकते हैं। इस दशवे अध्यायमें भी कतिपय दार्शनिकोंका उल्लेख किया गया है। उन सम्पूर्ण कुमतोंका इस अबाधित स्याद्वाद नीतिद्वारा खण्डन हो जाता है । और अनेकान्त शासन अनुसार मोक्ष तत्त्व प्रकाशित हो जाता है।
एवं जीवादि तत्त्वार्थाः प्रपञ्च्य समुदीरिताः । सम्यग्दर्शनविज्ञानगोचराश्चरणाश्रयाः ॥ २८ ॥ ततः साधीयसी मोक्षमार्गव्याख्या प्रपञ्चतः, सर्वतत्त्वार्थविद्येयं प्रमाणनयशक्तितः ॥ २९ ।।
ग्रन्थकार कह रहे हैं कि सम्यग्दर्शन और समीचीन विज्ञानके विषय हो रहे तथा उत्तम चारित्रके आश्रय हो रहे जीव, अजीव आदि तत्त्वार्थोका श्री उमास्वामी महाराजने संक्षेपसे आईतदर्शन मोक्षशास्त्रमें बहुत बढिया निरूपण किया है । उन्हीं जीव आदि तत्त्वोंका हमने विस्तारसे इस प्रकार " श्लोकवात्तिकालंकार" ग्रन्थमें बढिया विवरण कर दिया है । ग्रन्थके अध्ययन, अध्यापनका फल रत्नत्रयका अवलम्ब प्राप्त हो जाना है। तिस कारण विस्तारसे मोक्ष मार्गकी व्याख्या करना बहुत बढिया कर्तव्य हुआ है । प्रमाण और नयकी प्रकाण्ड सामर्थ्य से की गयी यह ग्रन्थ व्याख्या सम्पूर्ण तत्त्वार्थोंकी विद्या है। भावार्थ-तर्क उठाकर पूर्वपक्ष में किये गये सम्पूर्ण दार्शनिकोंके मतको दिखाया गया है । और उत्तर पक्ष में जैनदर्शनकी पुष्टि की गई है। यों ग्रन्थके अध्ययन करनेवालोंको सम्पूर्ण विद्याओंका परिज्ञान होकर पूर्वपक्षोंका त्याग और उत्तर पक्षोंका सादर ग्रहण हो जाता है । आद्य सूत्र " सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः " का अवतरण करते समय ग्रन्थकारने उसके अव्यवहित पूर्व में " एवं साधीयसी साधोः प्रागेवासन्ननिर्वृतेः, निर्वाणोपाजिज्ञासा तत्सूत्रस्य प्रवत्तिका" यह वात्तिक कहा है। तदनुसार आदि ग्रन्य और अन्तिम ग्रन्थका संदर्भ मिलाते हुये ग्रन्थकार कह रहे है कि सभी दार्शनिकोंका अन्तिम ध्येय मोक्ष है । उस मोक्षके मार्गकी जिज्ञासा होना सहज है। अतः आदि सूत्र में मोक्षका मार्ग बताकर दशवें अध्याय तक मोक्षका निरूपण कर दिया गया है। मोक्ष और मोक्षके कारणोंका निरूपण करते हुये आचार्योंको संसार और संसारके