________________
तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
२८० )
उपायों के लिये ही सूत्रों मे प्रतिपादित किये गये हैं । इसपर यदि तुम यों कहो कि वह प्रकरण तो संवर के लिए कहा गया है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह एकान्त नहीं कर बैठना, क्योंकि पूर्व प्रकरण मे जो उपदेश दिया गया है वह दोनों के लिये है । तिसकारण गुप्ति, समिति आदि का प्रकरण संवर के लिये होता सन्ता भी ध्यान करने की विधि मे उसके उपायों का निरूपण करने के लिये भो होजाता है । " एका क्रिया द्वचर्यकरी प्रसिद्धा", धान्य के लिये बम्बा, नहरें, गूले, बनायो जाती हैं। उनसे पशु, पक्षी भी पानी पीलेते हैं, हाँ, कानफाड लेना या सोतारामो चादरा ओलेना, कानों मे डाट पागट्टा लगा लेना, पञ्चाग्नि तपना, ये कोई भी ध्यान को सामग्री नहीं है । निद्रा, आलस्य, रागद्वेष, छोडकर एकाग्र चित्त लगाने का अभ्यास करना, शरीर को स्तब्ध रखना, इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त करना इत्यादिक प्रकरण ध्यान के उपाय हो जाते हैं । यद्यपि ध्यान के संपूर्ण धर्मों का संग्रह इस सूत्र मे नहीं हो सका है तथापि यहाँ प्रकरण अनुसार इस सूत्र मे ध्यान के सम्पूर्ण धर्मों की विना कहे ही पूर्व, अपर प्रकरणों को सामर्थ्य से सिद्धि होजाती है । शङ्खों द्वारा स्थूलरूप से स्वल्प प्रमेय कहा जाता है, तात्पर्य से बहुत अर्थ: खींच लिया जाता है । "तात्पयं वचसि "
तदेवं सामान्येनोक्तस्य ध्यानस्य विशेषप्रतिपत्त्यर्थमाह ।
तिसकारण इस प्रकार सामान्य से लक्षरण कर कह दिये गये ध्यान के विशेषों की शिष्य को व्युत्पत्ति कराने के लिये करुणासागर सूत्रकार महाराज इस अगिले सूत्र को व्यक्तरूपेण कह रहे हैं, उसको दत्त अवधान होकर सुनो।
रौद्रधर्म्यशुक्तानि ॥२८॥
आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान ये ध्यान के चार भेद है । दुःख के कार्य और दुःख के कारण होरहे इष्टवियोग, अनिष्टसंयोग, दुःखवेदना, भोगाकांक्षा अनुसार बुरे चिन्तन करना आर्त्तध्यान है। हिंसा, परिग्रह आदि के आवेशसे बुरे परिणामों मे घुलते हुये एकटक अनेक स्मृतियाँ उपजाते रहना रौद्रध्यान हैं । धार्मिक सिद्धान्तों और धार्मिक क्रियाओं का तन्मय होकर एकाग्र विचार करना धर्म्यं ध्यान है । ज्ञानार्णव मे इसकी विधि का विवेचन किया गया है। ये तीन ध्यान तो वर्तमान कालीन इस क्षेत्र के अनेक जीवों को स्वसंवेद्य है । किन्तु शुक्लध्यान केवल आगम द्वारा ही बोद्धव्य है। शुद्धद्रव्यार्थिक, पर्यायर्थिक नयों अनुसार वस्तु का चिन्तन करना