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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
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" तत
में हो विपाक होता है । संसरण हो रहे भव में अनुभव कराने के स्वभाव को धार रहीं नरक आयु, तिर्यगायु, आदि चार प्रकृतियों का भव द्वार करके अनुभव होता है । एव " इस हेतु को बासठ पुद्गल विपाकी प्रकृतियों के समान चार क्षेत्र विपाकी, अठत्तर जीवविपाकी, और भवविपाकी, कर्मों के साथ भी लगा लेना । अर्थात् तिस ही कारण से यानी उक्त तीन प्रकार की प्रकृतियों का क्षेत्र, जीव, भव, इनके द्वारा ही आत्मा में अनुभव होता है अन्य प्रकारों से फल देने में इनकी सामर्थ्य नहीं हैं ।
तेन मूलप्रकृतीनां स्वमुखेनैवानुभवो, अतुल्यजातीयानामुत्तरप्रकृतीनां च निवेदितः । तुल्यजातीयानां तूत्तरप्रकृतीनां परमुखेनापीति प्रतिपत्तव्यमन्यत्रायुर्दर्शनचारित्रमोहेभ्यः, तेषां परमुखेन स्वफलदाने सामर्थ्याभावात् ।
तिस निरूपण करके इस रहस्य का भी निवेदन कर दिया गया है कि ज्ञाना'वरण आदि आठ मूल प्रकृतियों का अपनी-अपनी ही मुख्यता करके आत्मा में विपाक होता है । ज्ञानावरण प्रकृति कभी दर्शनावरण रूप संक्रमण नहीं करती है उच्च गोत्र भले ही नीच गोत्र कर्मरूप परिणमन कर अनुभव देने लग जाय किन्तु नीच गोत्र कर्म कभी नाम - कर्म बनकर अनुभव नहीं करा सकेगा, तथा जो तुल्यजातिवाली नहीं हैं ऐसी उत्तर प्रकृतियों का भी स्वकीय मुख करके ही अनुभव होगा । अप्रत्याख्यानावरणक्रोध प्रत्याख्यानावरण रूप से फल दे सकता है किन्तु अप्रत्याख्यानावरण क्रोध का हास्य ता रति रूप करके विपाक नहीं होता है । गतिकर्म का स्पर्श कर्मफल रूप से आत्मा में विपाक नहीं होता है । हाँ, तुझ्य जातिवाली उत्तर प्रकृतियों का तो अन्य प्रकृतिरूप करके भी अनुभव हो जाता समझ लेना चाहिये । जैसे कि मतिज्ञानावरण का श्रुतज्ञानावरण के फलरूप से विपाक हो सकते है । हाँ, इन तुल्यजातिवाली उत्तरप्रकृतियों में चारों आयुयें तथा दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय को छोड देना चाहिये । उन आयुः आदिक कर्मों की परप्रकृतिजन्य फल की मुख्यता करके अपने फल को देने में सामर्थ्य नहीं है । नरकआयु:कर्म का तिर्यंचआयु या मनुष्य आयुः रूप से विपाक नहीं होता है इसी प्रकार दर्शन मोहनीय कर्म का परिणाम होकर चारित्र मोहनीय कर्म के मुख करके फल प्राप्त नहीं होता है ।
कुतः पुनर्ज्ञानावरणादिकर्मप्रकृतीनां प्रतिनियतफलदानसामर्थ्यं निश्चीयते इत्याह-
अग्रिम सूत्र के अवतरण की ग्रन्थकार प्रतिपत्ति कराते हैं कि ज्ञानावरण, दर्शनावरण, आदि कर्मप्रकृतियों की प्रत्येक कर्म के लिये नियत हो रहे फल को देते