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________________ ६२९ सप्तमोऽध्याय कौन हैं ? ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर सूत्रकार महाराज इस अग्रिम सूत्र को कह रहे हैं । बंधवधच्छेदातिभारारोपरणान्नपाननिरोधाः ॥२५॥ अभीष्ट देश में जाने के लिये उत्सुक हो रहे जीव के प्रतिबन्ध हेतु हो रहे हथकड़ी, लेज आदि से उस जीव को बांध देना बंध है। डंडा, चाबुक, छड़ी आदि करके प्राणियों का ताड़न करना बध है। कान, नाक, अण्डकोष आदि अवयवों को छेद देना छेद है। न्यायोचितभार से अधिक बोझ लादना अतिभारारोपण है। उचित समय पर या भूख, प्यास लगने पर गाय आदि के खाद्य, पेय पदार्थों का रोक लेना अन्नपान निरोध है । ये अहिंसाणुव्रत के प्रमादयोग से किये गये बन्ध आदि पांच अतीचार हैं। यदि प्रमादयोग नहीं है और हितैषिता है तो कुँआ, गड्ढा आदि में गिर जाने को रोकने के लिये पशु को लेज आदि से बांध देना, अथवा पागल स्त्री या पुरुष को स्वपरघात के निवारणार्थ सांकल आदि से बांध देना दोषाधायक नहीं है । कोई कोई पागल या भूतावेश की चिकित्सा तो थप्पड़ या बेंत से ताड़ना और कान, नाक, को दबाना आदि उपायों से की जाती है। उपद्रवी या अनभ्यासी छात्र का गुरु भी ताड़न करते हैं माता-पिता भी बच्चों को कदाचित् पीट देते हैं । शल्य चिकित्सा करने वाले डाक्टर या जर्राह फोड़ा को चीर देते हैं । आवश्यकता पड़ने पर अंगुली, टांग, आदि उपाङ्गों का छेद भी कर डालते हैं। वायु का रोग या अंगशून्यता की चिकित्सा के लिये शीशा का भारी कड़ा हाथ-पांव में डाल दिया जाता है। हितेच्छु वैद्य रोगी के खाने पीने को रोक देता है। उपवास करने का उपदेश देने वाले पण्डित भी दूसरों के अन्नपान का निरोध कर देते हैं। बात यह है कि विशुद्धि के अंग हो रहे बंध आदिक मल नहीं हैं और संक्लेशजनक हो रहे बंध आदिक उस अहिंसाविरति के अतीचार हैं । जीव के संपूर्ण प्राणों का वियोग नहीं करूंगा इतने मात्र अहिंसा व्रत को एक देश पाल रहा है फिर भी क्रोधवश बांधता, ताड़ता, छेदता, अतिभार लादता और खाना पीना रोकता हुआ प्रमादी जीव निर्दय होने के कारण व्रत, को सर्वाङ्ग नहीं पाल रहा संता अतीचार दोष का भागी हो जाता है। अभिमतदेशे गतिनिरोधहेतुबंधः प्राणिपीडाहेतुर्वधः, कशायभिघातमात्रं न तु प्राणव्यपरोपणं तस्य व्रतनाशरूपत्वात्, छेदोंगापनयनं, न्याय्यभारातिरिक्तभारवाहनमतिभारारोपणं, क्षुत्पिपासाबाधनमन्नपाननिरोधः । कुतोऽमी पंचाहिंसाणुव्रतस्यातीचारा इत्याह जाने आने के लिये अभीष्ट हो रहे देश में स्वच्छन्द गमन के निरोध का हेतु हो रहा बन्ध है। ताड़न आदि द्वारा प्राणियों की पीड़ा का कारण हो रही वध क्रिया है जो कि चाबुक, लौदरी, बैत आदि करके अभिघात कर देना मात्र है । किन्तु वध शब्द करके यहां सम्पूर्ण प्राणों का वियोग' कर मार डालना अर्थ नहीं पकड़ना क्योंकि वह हत्या करना तो अहिंसावत का ही नाश कर देना रूप है "सा हि स्यादतिचारोंऽशमंजनम्" । कान, नाक आदि अवयवों का छेद डालना छेद है । न्याय से अनपेत (समुचित ) हो रहे बोझ से अधिक बोझ लादना अतिभारारोपण है। भूख, प्यास की वाधा उपजाना अन्नपान निरोध है। यों ये पांच अतीचार हुये। यहां कोई पूछता है कि अहिंसाणुव्रत के वे बन्ध आदि पांच अतीचार भला किस युक्ति से सिद्ध हो जाते हैं ? बताओ। ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर ग्रन्थकार अग्रिम वार्तिक द्वारा उत्तर कहते हैं। तत्राहिंसावतस्यातीचारा बंधादयः श्रुताः । तेषां क्रोधादिजन्मत्वात्क्रोधादेस्तन्मलत्वतः ॥१॥
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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