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पंचम - प्रध्याय
नित्यं रूपं विरुध्येत नेतरेणैकवस्तुनि । अर्पितेत्यादिसूत्रेण प्राहैवं नयभेदवत् ॥ १ ॥
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एक वस्तु में इतर यानी अनित्य स्वरूप के साथ वर्त रहा नित्यस्वरूप धर्म विरुद्ध नहीं होता है, ( प्रतिज्ञा वाक्य ) प्रपित और अर्पित करके सिद्ध हो जाने से ( हेतु ) नय के भेदों के समान ( श्रश्वयदृष्टान्त ) । अर्थात् - निश्चयनय व्यवहारनय या द्रव्यार्थिक पर्यायाथिक, संग्रहनय, ऋजुसूत्रनय, श्रादि के भिन्न विषयों में अविरुद्ध होकर नाना धर्म जैसे व्यवस्थित होरहे हैं. उसी प्रकार प्रधानता और अप्रधानता से आरोपे गये अनेक रूप युगपत् वस्तु में ठहर रहे हैं, प्रतीयमान धर्मों से कोई विरोध नहीं है । "नयभेदावत्, यह पाठ अच्छा जंचता है, नय के भेद प्रभेदों को जानने वाले सूत्रकार महाराज इस अर्पितानर्पित इत्यादि सूत्र करके इस प्रकार अनुमान वाक्य को बहुत अच्छा कह रहे हैं ।
कुतः पुनः सतो नित्यमनित्य च रूपमर्पितमनति चेत्याह ।
यहां पुनः किसी की जिज्ञासा है, कि सत् वस्तुका नित्य रूप और अनित्यरूप भला किसी कारण से अर्पित यानी प्रधानपने से विवक्षित होजाता है ? तथा नित्यपना या श्रनित्यपना क्यों श्रनर्पित होजाते हैं ? बताओ ऐसा प्रश्न प्रवर्तने पर ग्रन्थकार इस अग्रिम वार्तिक को कहते हैं ।
द्रव्यार्थादर्पितं रूपं पर्यायार्थादनर्पितं ।
नित्यं वाच्यमनित्यं तु विपर्यासात्प्रसिद्ध्यति ॥ २ ॥
द्रव्यथिक नय के विषय हो रहे द्रव्य स्वरूप अर्थ से प्रधानपन को प्राप्त हो रहा और पर्यायाथिकनय के विषय माने गये पर्याय स्वरूप अर्थ से अविवक्षित होकर अनपित होरहा वस्तु का नित्य स्वरूप कहना चाहिये तथा इसके विपरीतपने यानी द्रव्यार्थिक से अनर्पित और पर्यायार्थिक से अर्पित स्वरूप करके तो वस्तु का अनित्य स्वरूप प्रसिद्ध हो रहा है । भावार्थ- जैसे कि धूम हेतु में अग्नि की अपेक्षा साधकत्व और पाषाण की अपेक्षा प्रसाधकत्व धर्मं विराजमान है, सद् गृहस्थ यदि स्व स्त्री के लिये काम पुरुषार्थी होय और परस्त्री के लिये सुदर्शन सेठ के समान नपुंसक होय तो यह कुलीन पुरुष का निज स्वरूप है, कोई अपयश या गाली नहीं है ।
द्रव्यार्थादादिष्टं रूपं पर्यायार्थादनादिष्टं यथा नित्यं तथा पर्यायार्थादादिष्टं द्रव्यार्थादनादिष्ट मनित्यमिति सिद्ध्यत्वेव ततस्तदेकत्र सदात्मनि न विरुद्धं । यदेवं रूपं निभ्यं तदेवानित्यमिति वचने विगेधसिद्धेः विकलदेशायत्तनय निरूपणायां सर्वथा विरोधस्यानवतारात् । जिस प्रकार द्रव्य स्वरूप श्रथं से निरूपित किया गया और पर्याय आत्मक अर्थ से नहीं कहा जा चुका स्वरूप नित्य है, उसी प्रकार पर्याय अर्थ स्वरूप से प्रदिष्ट किया गया और द्रव्य अर्थ से नहीं