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श्लोक-वार्तिक
और दूसरे प्रदेश पर पांच यों इसी ढंग से ठहर सकेंगी, परिपूर्ण परमाणु एक प्रदेश से न्यून स्थल पर जैसे नहीं ठहर पाती है उसी प्रकार स्व एक परमाणू के लिये नियत होरहे एक प्रदेश से अतिरिक्त दूसरे प्रदेश या उसके किसी भाग में भी अपना शरीर नहीं फैला सकती है । अतः संघात से उत्पन्न हुआ अवयवी अधिक से अधिक अपने कारण माने गये परमाणुनों की संख्या बराबर प्रदेशों में ठहर जाय अथवा कम से कम एक प्रदेश में ही ठहर जाय क्योंकि प्रदेश के लक्षण में " सब्वाणठाणदाण रिहं" पद पड़ा हुआ है । जगत् की सम्पूर्ण परमाणुओं को एक ही प्रदेश अवकाश दे सकता है यों कोई विशेष नियम करना तो ठीक नहीं है कि उन स्वकीय कारणों के अवगाह से छोटा ही कार्य का अवगाह स्थान होय जब कि जितने परमाणुओं के संघातसे स्कंध उपजता है उन परमाणुओं की संख्या बराबर प्रदेशों में और उसके स्वल्प प्रदेशोंमें भी स्कन्ध रहसकता है,लोकाकाशमें ही पुद्गल ठहरते हैं ।
__ अतः परमाणुओं की गणना असंख्यात तक पहुंच नावेगी किन्तु परमाणुषों की अनन्तानन्त संख्या तो लोकाकाश के प्रदेशों से बहुत बढ़ जाती है, भले ही अलोकाकाश के प्रदेश सम्पूर्ण पूगल परमाणुओं से अनन्तानन्त गुणे हैं, किन्तु अलोकाकाश में एक भी परमाणु नहीं है । खेद है, जहां स्थान है, वहां अवगाह करने योग्य द्रव्य नहीं है, और जहां अनन्तानन्त द्रव्ये भरी पड़ी हैं. वहां उनको फैल फूट कर रहने के लिये परिपूर्ण स्थान नहीं है, हां निर्वाह ता सवका सर्वत्र हो ही जाता है, अथवा इस पंक्ति का यों अर्थ कर लिया जाय कि अाने यानी स्वयं द्वघणुकों के कारण होरहे अणूपरिमाण वाले परमाणूत्रों से अधिक परिमाण वाले दो द्वधणूकों से उपज रहा कोई चतुरणूक तो आकाश के चारों प्रदेशों में अवगाह करने वाला समचतुरस्र उपजेगा अर्थात्-छह पैलू घन चौकोर चार वरफियों को सटा कर समभाग में धर दिया जाय उसी प्राकृति के समान चार अणूत्रों के बने चतुः प्रदेशी चतुरणूक का संस्थान है, या तल ऊपर चार वरफियों को धर दिया जाय अथवा दो वरफियों के ऊपर पुनः दो वरफियां धर दी जावें एवं एक से एक वरफो को मिला कर सम प्रदेश में लम्बा विछा दिया जाय इन प्राकृतियों के समान चतु.प्रदेशी स्कन्ध का आकार है, गोल कुप्रा या अधगोल नाली को बनाने के लिये सपाट ईटों को गोलाई के उपयोगी स्वल्प छील लिया जाता है, या कुछ गोलाई को लिये हुये ई ही प्रथम से वैसे ही सांचे में ढाल ली जाती हैं । किन्तु परमाणूत्रों की नौकें कालत्रय में भी किसी अनन्त बलशाली जीव या पैनी छनो करके भी घिसो नहीं जा सकती हैं, अतः परमाणूत्रों के गोल या नौकोले पिण्ड में परमाणुषों की नौंकें अवश्य रहेंगी स्पर्शन इन्द्रिय या चक्षुसे अतीन्द्रिय परमाशुभों की नौके टटोई या देखी नहीं जाती हैं, फिर भी प्रतीन्द्रिय-दर्शी विद्वान् सर्वावधि या केवलज्ञान से गोल तिकोने, पंच कोने, आदि पिण्डों में उभर रहीं परमाणु प्रों के एक प्रदेशी पैल को स्पष्ट देख लेते हैं, "अनादिअत्तमझ अत्तन्तं व इदिये गेज्झं" यह सिद्धान्त बेचारा सूक्ष्म गवेषणा में सम-चतरस परमाणमों के कौनों के सद्भाव का विघात नहीं कर पाता है, एक प्रदेशो परमाणु के निरंशपन की प्रशंसा उसके उपम नोचे के भागा का नहीं बाजागो प्रयया परमागू करके बड़े कामना