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________________ श्लोक-वातिक प्रणवः स्कंधाश्च ॥ २५ ॥ व्यक्ति रूप से अनन्तानन्त परमाणुयें और अनन्तानन्त स्कन्ध ये पुद्गल के साधारणतया दो प्रकार हैं। अर्थात्-एक वर्ण, एक रस, एक गन्ध, दो स्पर्श, इन गुणों को धार रहा शक्ति की अपेक्षा छह पहलों वाला, चौकोर वर्फी के समान एक प्रदेश अवगाही, हम आदि जनों को अनुमेय, हा सर्वावधि ज्ञानी ( गोम्मटसार अनुसार ) या केवलज्ञानी महाराज के प्रत्यक्ष योग्य, आत्मादि प्रात्ममध्य, आत्मअन्त्य, अतीन्द्रिय, अविभागी, ऐसी पुद्गल द्रव्य परमाणु है । तथा अनेक परमाणुओं का मिल कर सादि बंध अवस्था को प्राप्त हुआ या अनादि से पिण्ड स्वरूप बन्ध रहा अनेक शक्तियों का धारक ऐसा घट, पट स्कन्ध, वर्गणा, आदि भेदों वाला स्कन्ध नामका पुद्गल है । जगत में जीव राशि से अनन्तानन्त गुणे अनेक परमाणुये और स्कन्ध ठसाठस भरे हुये हैं। प्रदेशमात्रभाविस्पर्शादिपर्यायप्रसवसामर्थ्यनाण्यंते शब्द्यन्ते इति श्रणवः सौक्ष्मादात्मादय आत्ममध्या अान्मांताश्च । तथा चोक्तं " आत्मादिमात्ममध्यं च तथात्मांतमतीन्द्रियं । अविभागं विजानीयात परमाणुमनंशकम् " इति । - केवल एक प्रदेश में ही होने वाले अनेक स्पर्श आदि गुणों की पर्यायों के उत्पादन सम्बन्धी सामर्थ्य करके जो अणन किये जाते हैं यानी शब्द द्वारा कहे जा रहे हैं। इस कारण ये अणु नामक पुदगल हैं। सूक्ष्मता होने के कारण स्वयं अपना आत्मा ही तो उन परमाणुओं का प्रादि भाग है। और स्वयं अपना पूराशरीर ही उनका मध्य भाग है, तथा अपना पूरा डील ही उन परमाणुओं का स्वकीय अन्तिम भाग है । अर्थाद-बात यह है कि परमाणु यदि स्व से छोटे अबयवों करके वना हुआ हीता तब तो परमाणु के आदि भाग, मध्य भाग, पिछला भाग, ये न्यारे न्यारे होते किन्तु निरश एक परमाणु के व्यक्ति रूप से न्यारे न्यारे कई भाग नहीं हैं । शक्ति की अपेक्षा वरफी के समान छह पहल वाली परमाणु के छह भाग माने ही जाते हैं। तभी तो पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ऊर्ध्व, अधः, इन छहऊ दिशाओं से परमाणु के साथ छह परमाणुयें चिपक जाती हैं। यदि शक्ति की अपेक्षा भी परमाणु निरंश होती तो यहां वहां से छह परमाणु तो क्या अनन्त परमाणुयें भी चुपक कर कभी बड़ा स्कन्ध नहीं बन सकती थीं घट, पट, सुमेरु, आदि बड़े बड़े स्कन्ध भी परमाणु के बराबर होजाते अतः परमाणु की व्यजन पर्याय छह पहल वाली चौकोर घन आकृति वाली माननी पड़ती है। आचारसार ग्रन्थ में भी वीरनन्दि सिद्धान्त चक्रवर्ती ने " अणुश्च पुद्गलोऽभेद्यावयवः प्रचयशक्तित: । कायश्च स्कधभेदोत्थश्चतुरस्रस्त्वतीन्द्रियः" इस श्लाक द्वारा परमाणु को चतुरस्र यानी सम घन चौकोर बताया है पुद्गल परमाणु को गोल या अण्डाकार माननेपर कालाणयें और आकाश प्रदेश भी वैसे ही गोल मानने पडेंगे गोलमोल पदार्थों से कोई वर्तन ठोस नहों भर सकता है । बीच में पोल रह जाती है, किन्तु लाकाकाश में प्राकाश प्रदेशों या कालाणुओं से काई भी स्थल रीता नहीं
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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