SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२ श्लोक-वार्तिक आदि का दृष्टान्त दे देते हैं, और स्थूलता को पुद्गल की पर्याय साध्य करने पर प्रसिद्ध होरही सूक्ष्मता को निदर्शन बना लेते हैं, पक्ष या दृष्टान्त होरहे स्थूलता और सूक्ष्मता में से कोई एक तो किसी अतुमाता के यहां प्रसिद्ध ही है, जिस अनुमाता को दोनों ही प्रसिद्ध नहीं हैं, उसके प्रति तीसरा दृष्टान्त ढूंढ लिया जाता है, यहां प्रकरण में केवल शब्द और बन्ध का व्याख्यान कर अन्य पाठ पुद्गल परिरणामों को उपरिष्ठात् समझने के लिये ग्रन्थकार का निदेश है, प्रव्यभिचरित काय कारण भाव और ज्ञाप्यज्ञापक भाव में अन्यथानुपपत्ति ही बीज है । परमसोदमस्याणुधर्मत्वमनां तत एवं व्यवस्थानात् सामर्थ्यादिपरसौक्ष्म्यं विल्वाद्यपेक्षया वदरादिषु स्कन्धपरिणामः वाह्येन्द्रियग्राह्य वात् स्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवत् शब्दबंधवच्च । द्व्यणुकादि वालेंद्रियग्राम पे सौम्य स्कन्धयय एपेक्षिक सूक्ष्मात्मत्वाद्वदरादिसौक्ष्म्यवत् । सब से उत्कृष्ट होरही यानी परम प्रकर्ष को प्राप्त होरही परम सुक्ष्मता तो अनों का धर्म है, तिस ही कारण से यानी अन्तिम सूक्ष्मता की क्वचित् परिनिष्ठा होजाने से ही परमाणुत्रों की व्यवस्था होजाती है, जैसेकि प्रकृष्यमाण परिवारकी पराकाष्ठा आकाश में व्यवस्थित होरही है । विना कहे ही सामथ्य से अपर सूक्ष्मता यानी प्रापेक्षिकसूक्ष्मता भी विल्व (बेल) आमला प्रादि की अपेक्षा करके वेर, चना, उड़द, सरसों, ग्रादि पुद्गल स्कन्धों को पर्याय होरही मानी गई है, (प्रतिज्ञा), वहिरंग इन्द्रियो द्वारा ग्रहण करने योग्य होने से ( हेतु ) स्थूलता, आकृति भेद, अन्धकार, छाया घाम, उद्योत के समान ( पहिला अन्ववहृष्टान्त) और बखान दिये शब्द या बन्ध के समान ( दूसरा अन्वय दृष्टान्त ) । इस अनुमान द्वारा स्थूलता आदि को दृष्टान्त बना कर आपेक्षिक सूक्ष्मता को साध दिया है, दो परमाणुओं के बने हुये द्वि-अणुक और तोन आदि प्रणुत्रों से बने श्रणुक, चतुररणुक, पंचाक श्रादि स्कंधों के द्वि-अणुक उपयोगी भेद से उपजा हुआ द्वि-अरणुक एवं त्र्यणुक, कामरण वर्गणा, ग्राहारवगंणा, आदि स्कन्धों में बहिरग इन्द्रियो से नहीं भी ग्राह्य हो रहे सूक्ष्मपन ये ( पक्ष पुद्गल स्कन्धों की ही पर्यायें हैं, (साध्य ) उत्तरोत्तर छोटेपन की या एक दूसरे की अपेक्षानों से उपजे सूक्ष्म-प्रात्मकपना होने से ( हेतु ) बेर, मकोय, फालसे, धनिया, साबूदाना, पोस्त, आदि के सूक्ष्मपन समान ( अन्वय दृष्टान्त ) । इस प्रनुमान द्वारा आपेक्षिक सूक्ष्मता को पुद्गल स्कन्धों का पर्याय साध दिया है । एतेन कार्मणशरीरादों सौक्ष्म्यस्य स्कंधपर्यायत्वं साधितं । तथास्मदा दिवाद्रियग्राह्याः स्थौल्यादयः स्कंधपर्याया स्थौल्यादित्वादस्मदा दिन हों। द्रयग्र । ह्य स्थौल्या दिवत् । इस उक्त कथन करके ज्ञानावरणादि कर्म स्वरूप कार्मण शरीर अथवा तेजो-वर्गणा निर्मित तेजस शरीर, वाह्यनिवृत्ति स्वरूप प्रतन्द्रिय स्पर्शन, यदि इन्द्रियों यादि में वर्क्स रहे सूक्ष्मपन को
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy