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________________ [ ११ ] ३१२ ३२५ १९३ स्वकीय जातिका परित्याग नहीं करके द्रव्यका प्रयोग और विस्रसा स्वरूप विकार हो जाना परिणाम है जीवके प्रयत्नसे हुआ विकार तो प्रयोग स्वरूप परिणाम है जीव प्रयत्नके बिना अन्य अंतरंग बहिरंग कारणोंसे विस्रसा स्वरूप परिणाम होता है परिणमन की सामर्थ्य होते हुए भी बहिरंग कारणों की अपेक्षा रखता है बहिरंग कारण है सो काल है १७० बीजसे अंकुर पर्यायाथिक नयकी अपेक्षा भिन्न है और द्रव्याथिक नयको अपेक्षा अभिन्न है १७४-७५ कुमार और युवा अवस्थाओंमें सदृशपना भी है विदृशता भी है १८६ संकर व्यतिकर दोषोंका लक्षण १९२ एकान्त नित्य व एकान्त क्षणिकका खण्डन काल अपने परिणमनमें स्वयं निमित्त है काल विभाव रूप परिणमन नहीं करता इसलिए अपरिणामी है १९४ क्रियाका लक्षण १६५ परत्व अपरत्वका लक्षण निश्चय ( मुख्य ) काल २०१ व्यवहार काल २०२ भूत वर्तमान भविष्य कालोंकी सिद्धि २०४ व्यवहार कालकी सिद्धि २०५ . सूत्र २३ २०९-२१६ स्पर्श आदि चारों गुण एक दूसरेके अविनाभावी है . २१२ सूत्र २४ परमाणु तो शब्द आदि पर्यायोंके धारी नहीं, क्योंकि विरोध आता है स्कंध हीशब्द रूप होता है २२१ शब्द आकाशका गुण नहीं है २२१-२२ परमाणु शब्दका उपादान कारण नहीं हो सकता, क्योंकि परमाणु सूक्ष्म है २४१-४२ बंधका लक्षण ३०४-३०८ संयोगका लक्षण ३०४ संयोग व बंधका अन्तर ३०८ पुद्गलोंके परस्पर बन्धमें एकत्व संभव है किन्तु जीव और पुद्गलके बंधमें एकत्व उपचार से है ३१० सौक्ष्म्यका कथन ३११ परमाणु सांश भी है निरंश भी सूत्र २३ ३१४-३२० अनेकान्तसे परमाणुकी सिद्धि ३१८ ३२०-३२४ परमाणु व स्कंधकी उत्पत्तिकी सिद्धि ३२१-२२ सूत्र २५ ३.४-३३९ अणुसे भेद ही उत्पन्न होता है परमाणु नित्य ध्रुव नहीं है ३३१ सूत्र २८ ३३९-३४० संघातसे, भेदसे, संघातभेदसे चाक्षुष होता है ३४० 'चक्षुसे मात्र रूपका ही ग्रहण होता है' इसका खंडन । गुण गुणीके सर्वथा भेदका खंडन संघातसे, भेदसे, दोनोंसे अस्पार्शन अरासन पदार्थ भी स्पार्शन रासन हो जाते ३४७ सूत्र २९ ३४७-३५० सामान्य 'सत्' द्रव्यका लक्षण है। ३४८ सूत्र ३० २५०-३०७ उत्पाद व्यय ध्रौव्यका स्वरूप ३५१ सत्के इस लक्षणसे परमतों का खंडन हो जाता है ३५३ 'युक्त'का अर्थ तदात्मक संबंध है ३५७ सूत्र ३१ ३५७-३६० जो अतद्भाव है व्यय सहित वह अनित्य ३५७ अतद्भावका अर्थ अन्यपना है ३५८ सत्र ३२ - ३६०-३६५ अर्पित अनर्पितके कारण एक द्रव्यमें नित्य अनित्यपना विरोधको प्राप्त नहीं होता ३४२ १६८
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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