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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
एत्यास्मिल्लीयत इत्यालयो निवासः । ब्रह्मलोक आलयो येषां ते ब्रह्मलोकालयाः। सर्वब्रह्मलोकदेवानां लौकांतिकत्वप्रसंग इति चेन्न, लोकांतोपश्लेषात्। ब्रह्मलोकस्यांतो हि लोकांतः लोकांते भवा लौकांतिका इति न सर्वत्र ब्रह्मले कदेवास्तथा । अथवा लोकः संसारःजन्मजरामृत्युसंकीर्णः तस्यांतो लोकांतः तत्प्रयोजना लोकांतिकाः । ते हि परीतसंसाराः ततश्च्युत्वा एकं गर्भवासमवाप्य परिनिर्वाति ।
चारों ओर या छहों ओरसे प्राप्त होकर इस स्थानमें जीव या पुद्गल लीन होजाया करते हैं। इस यथार्थ निरुक्ति द्वारा आलयका अर्थ निवास स्थान है। बाहरसे आता जाता हुआ मनुष्य स्पष्ट दीखता रहता है। किन्तु घर में घुसकर न जाने कहां झट लीन होजाता है। बाहरसे देखनेवाले केवल ताकते ही रह जाते हैं । जिन देवोंका निवास स्थान ब्रह्मलोक है, वे ब्रह्मलोकालय देव कहे जाते हैं। यहां कोई प्रश्न करता है कि तब तो पांचवें स्वर्ग ब्रम्हलोकमें रहने वाले सभी देवोंको लौकान्तिकपनेका प्रसंग आता है । जगत् श्रेणी के नौमे वर्गमूलका उसी श्रेणिमें भाग देने पर जो लब्ध आवे उसकी आधी संख्या प्रमाण असंख्यातासंख्यात ब्रम्हलोकवासी सभी देव तो लौकान्तिक नहीं माने गये हैं। ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नहीं कहना। क्योंकि लौकान्तिक शद में लोकान्त इस प्रकृतिका संसर्ग होरहा है। चूंकि ब्रम्हलोकका जो अन्तिम स्थान है,वह लोकांत है लोकान्त में होनेवाले देव लौकान्तिक हैं । इस कारण ब्रम्हलोकमें सर्वत्र निवास कर रहे अन्य असंख्याते देव तिस प्रकार लौकान्तिक नहीं हैं। किन्तु चार लाखसे कुछ अधिक ही देव लौकान्तिक हैं । अथवा दूसरी निरुक्ति यों की जा सकती है कि लोकका अर्थ यह जन्म, जरा, मृत्यु ओंसे संकीर्ण होरहा संसार है । उस संसारका जो अन्त है, वह लोकान्त है । जिन देवोंका लक्ष्य भून प्रयोजन वह लोक का अन्त करना है, ऐसे देव लौकान्तिक हैं। वे लौकान्तिक देव नियमसे संसारसे निक्रान्त हुये समझने चाहिये । कारण कि उस अपने स्थान ब्रम्हलोकसे चय कर कर्मभूमिमे एक मनुष्य जन्मरूप गर्भवासको प्राप्त कर समन्तात् शुभ होरही मोक्षको प्राप्त कर लेते हैं।
किं पुनरनेन सूत्रेण क्रियत इत्याह ।
कोई प्रश्न करता है कि इस सूत्र करके फिर सूत्रकारने क्या लक्ष्य सिद्ध किया ? ऐसी जिज्ञासा होने पर श्री विद्यानन्द आचार्य उत्तर वात्तिकको कहते हैं ।
तत्र लोकांतिका देवा ब्रह्मलोकालया इति।
सूचनात् कलावासित्वं तेषां नियतमुच्यते ॥ १ ॥ ___ उन वैमानिक देवोंके प्रतिपादक सूत्रमें श्री. उमास्वामी महाराजने ब्रह्मलोक में निवास करने वाले देव लौकान्तिक हैं । यों इस सूत्र द्वारा की गयी सूचनासे उन लौकान्तिक देवों का कल्पवासीपन नियत होरहा कह दिया है।