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________________ ५८३ फि कोई भूभ्रमणवादी कटाक्ष करते हैं कि भूमि ( पक्ष ) गोल आकारवाली है ( साध्य ) क्योंकि समान रात दिन होना, दिनका घटना बढना, रातका घटना बढ़ना, अनेक देशों में एक ही समय न्यारी तिरछी टेढी, आदि छायाओंका पडना, ग्रहोपराग होना आदिका दर्शन अन्यथा यानी गोल भूमिको माने विना सकता है ( ) यह अनुमान आप जैनोंके इस उक्त आगमका बाधक खडा हुआ है । फिर आपने स्वकीय आगमको बाधकरहित कैसे कहा ? ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि इस अनुमानमें कहा गया हेतु भप्रयोजक है। अपने साध्य के साथ नियतव्याप्तिको नहीं धार रहा है। विचारिये कि समरात्र आदिका दीख जाना यदि ठहर रही भूमिके गोल आकार होने को साध्य करने हेतु है ? तब तो हेतु साध्यका प्रयोजक नहीं हो सकेगा । व्यभिचार दोष आता है । भ्रमण कर रही भूमिके गोल आकार होने में भी वह समरात्र आदिका दीख जाना बन सकता है । अतः विपक्षसे व्यावृत्त नहीं होने के कारण तुम्हारा हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास है । अब यदि तुम भूभ्रमणवादी बनकर सूर्यकें चारों ओर घूम रही भूमिके गोल आकार होनेको साध्य करनेमें उस हेतुका प्रयोग करोगे तो भी तुम्हारा हेतु अनुकूलतर्कवाला नहीं है । क्योंकि ठहर रही भूमिके गोल आकार होनेपर भी वह समरात्र आदिका दीख जाना घटित हो जाता हैं । फिर भी व्यभिचार दोष तदवस्थ 1 "जैसे कि सौन्दर्यको साधने में धनिकपना हेतु व्यभिचारी है । समान दिन रात आदिका दीखना तो भूमिकी चल और अचल ' दोनों दशाओं में सघ जाते हैं । ऐसे विपक्षवृत्ति हेतुसे भूमि गोल आकारवाली नहीं सध पाती है । 1 रहा, तुलार्थचिन्तामणिः more अथ भूसामान्यस्य गोलाकारतायां साध्यायां हेतुस्तथाप्यगमकस्तिर्य सूर्यादि भ्रमणबादिनामर्धगोलकाकारतायामपि भूमेः साध्यायां तदुपपतेः । समतलायामपि भूमौ ज्योतिर्गतिविशेषात्समरात्रादिदर्शनस्योपपादितत्वाच्च । नातः साध्यसिद्धिः कालात्ययापदिष्टत्वाच्च । प्रमाणबाधितपक्षनिर्देशानंतरं प्रयुज्यमानस्य हेतुत्वेतिमसंगात् । ततो नेदमनुमानं हेत्वाभासोत्थं बाधकं प्रकृतागमस्य येनास्मादेवेष्टसिद्धिर्न स्यात् । अब यदि तुम यों कहो कि भूमिके ठहरने या घूमने का विशेष विचार नहीं कर भूमि सामान्यके गोल आकारसहितपनको साध्य करने में वह हेतु कहा जायगा प्रन्थकार कहते हैं कि तो भी तुम्हारा हेतु साध्यका ज्ञापक नहीं है। क्योंकि सूर्य आदिका तिरछा भ्रमण कहनेवाले या पृथिवीका सूर्यादिके ऊपर तिरछा भ्रमण कह रहे पण्डितों के यहां भूमिके आधे गोल आकार होनेको भी साक्ष्य करनेपर वई सम रात आदिका दीखना बन जाता है। अर्थात् — पूरा गोल आकार या आधा गोल आकार दोनों प्रकार भूमिकी रचना माननेपर वह हेतु बन जाता है। अतः फिर भी व्यभिचार दोष तदवस्थ रहा। दूसरी बात यह है कि दर्पण के समान समतल हो रही भूमिमें भी ज्योतिष्क विमानों की विशेष विशेष गतियोंसे समरात्र आदि का ' दीखना युक्त सिद्ध कर दिया गया है। अर्थात-सात राजू लम्बी एक राजू ज्या कर 13
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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