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तत्वार्थ लोकवार्तिके
कुरुक्षेत्रतक अनेक मध्यवर्त्ती देशों में स्थित हो रहे मनुष्यों के अभिमुख होकर सूर्यका उदय हो रहा है। कारण कि बडे माने जा रहे प्रमाण योजनकी अपेक्षा एक योजनके इकसठि भागों में अडतालीस भाग परिमाण सूर्य है। चूंकि चार कोसके छोटे योजनसे पांचसौ गुना बडा योजन होता है । अतः अडतालीसको पांचसौसे गुणा कर देनेपर और इकसठिका भाग देनेसे तीनसौ तिरानवे सही सत्ताईस बटे इकसठ छोटे योजनका सूर्य बैठता है । यह उत्सेध अंगुलसे बनाये गये योजन की अपेक्षा कुछ अधिक तीनसौ तिरानवै योजनप्रमाण है । आठ पडे जौका एक अंगुल, चौबीस अंगुलका एक हाथ, 'चार हाथका एक धनुष, दो हजार धनुषका एक कोस और चार कोसका एक योजन, ऐसे तीन सौ तिरानवे योजन लम्बा चौडा सूर्य है। दूसरी बात यह है कि उगते समय यहांसे हजारों बडे योजनों दूर सूर्यका उदय होनेसे व्यवहित हो रहे मनुष्यों के भी अपने अपने लटक रहे दैदीप्यमान सूर्यका प्रतिभासना सिद्ध है । भावार्थ — सूर्य भी बडा होते समय सूर्य हांसे बहुत दूर है। सबसे बडा दिन हो जानेपर सैंतालीस हजार दो सौ योजन दूरपर रहता है और छोटे दिन के अवसरपर इकत्तीस हजार आठसौ इकत्तीस योजन अतः लङ्का, उज्जैन, कुरुक्षेत्र, आदि दूर दूर देशोंपर ठहरे मनुष्यों को भी अपनी पूर्व सन्मुखरेखापर दीख जाता है । जितना बडा या दूरवर्ती पदार्थ होता है उतनी ही I उसकी सरल रेखाकी टेड कमती होती जाती दीखती है ।
अभिमुख आकाशमें
है
और चमकदार है
तथा उदय
त्रेसठ बड़े
दूर है ।
दिशा की ओर देखनेवालों को
द्वितीये अहनि तथा प्रतिभासः कुतो न स्यात्तदविशेषादिति चेन्न, मंडलांतरे सूर्यस्यो - दयात् तदंतरस्योत्सेधयोजनापेक्षया द्वाविंशत्येकषष्टिभागयोजनसह त्रप्रमाणत्वात्, उत्तरायणे तदुत्तरतः प्रतिभासस्योपपत्तेः दक्षिणायने तद्दक्षिणतः प्रतिभासनस्य घटनात् ।
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कोई प्रतिवादी आक्षेप करता है कि दूसरे दिन तिस प्रकार अपने ठीक सन्मुख गगनतलमें अवलम्बित हो रहे सूर्यका प्रतिभास किस कारणसे नहीं हो पाता है ? जब कि उतने ही बडे सूर्यका उतनी ही दूरपर उदय होना अन्तररहित विद्यमान है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नहीं कहना। क्योंकि दूसरे दिन अगले दूसरे मण्डलमें सूर्यका उदय हो जाता है । पहिले दिनके सूर्योदयसे इस दूसरे दिनके सूर्योदयका अन्तर छोटे उत्सेध योजनों की अपेक्षा एक हजार योजनप्रमाण हो जाता है । अर्थात् – एक एक मण्डलका अन्तर बडे योजनों से दो योजन है। पांच सौ से गुणा कर देनेपर छोटे एक हजार योजन हो जाते हैं । " दीडवहि चारखित्ते वेदीए दिणगदी हिदे उदया इस नियम के अनुसार बाईस बटे इकसठ बडे योजन प्रमाण संख्या निकाल लेनी चाहिये । स्थूल रूपसे सर्वत्र जम्बूद्वीप सम्बन्धी एक सौ चौरासी मण्डलोंमें प्रत्येकका एक एक हजार छोटे योजनका व्यवधान पडा हुआ है । अतः सूर्यके उत्तरायण होने पर उन लंका, कुरुक्षेत्र आदि के उत्तरकी ओर झुकता हुआ पूर्वमें प्रातःकाल सूर्योदयका प्रतिभास होना बन जाता है। और दक्षिणायनमें उन देशोंने दक्षिण की ओर हो रहे सूर्योदयका प्रतिभास जाना घटित
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