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तत्वार्थचिन्तामणिः
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सहस्राणि पत्रिंशच्च भागा योजनस्य मध्यविष्कंभः । सप्तचत्वारिंशत्पंचशताधिकाष्टादशसहस्राणि योजनानां पंचपंचाशच भागशतं योजनस्य बाह्यविष्कंभः।
कोई जिज्ञासु पूछता है कि श्री विद्यानन्द स्वामिन् महाराज ! यह बताओ कि धातकी खण्डमें भरत क्षेत्रकी चौडाई भला कितनी है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर ग्रन्थकार करके यों उत्तर कहा जाता है कि छह हजार छह सौ चौदह पूरे योजन और एक योजनके दो सौ बारह भागोंमें एक सौ उन्तीस भाग इतना धातकी खण्डके भरतका अभ्यन्तर विष्कंभ है। बारह हजार पांच सौ इक्यासी योजन
और योजनके छत्तीस बटे दो सौ बारह भाग धातकी खण्डके भरतकी मध्यम चौडाई है तथा अठारह हजार पांच सौ सेंतालीस और एक सौ पचपन बटे दो सौ बारह योजन धातकी खण्डके भरतका बाह्य विष्कंभ है। भावार्थ-धातकी खण्डका भीतरला व्यास पांच लाख है। वही लवण समुद्रका अन्तिम व्यास है। मध्यम व्यास नौ लाख और धातकी खण्डकी बाह्य सूची तेरह लाख योजन की है । " विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वदृस्स परिरयो होइ" स्थूलपरिधि व्याससे तिगुनी समझी जाती है । किन्तु सूक्ष्म परिधि तो व्यासके वर्गको दश गुना करनेपर पुनः उसका वर्गमूल विकाला जाय तब ठीक बैठती है। पांच लाखके वर्गके दश गुने पञ्चीस खर्व संख्याका वर्गमूल निकालनेपर पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उन्तालीस (१५८११३९) योजन धातकी खण्डकी अभ्यन्तर परिधि बैठती है । इक्यासी खर्व ( ८१०००००००००००) का वर्गमूल निकालनेपर अट्ठाईस लाख छियालिस हजार पचास (२८४६०५०) योजन धातकी खण्डकी मध्यम परिधि आती है । धातकी खण्डके बाह्य व्यास तेरह लाखके वर्गकै दश गुने एक नील उन्हत्तर खर्व (१६९०००००००००००)का वर्गमूल निकाला जाय तो इकतालीस लाख दश हजार नौ सौ इकसठ (१११०९६१) योजन धातकी खण्डकी बाह्य परिधि आ जाती है । जम्बूद्वीपमें जैसे पर्वत या क्षेत्रोंका विन्यास है वैसा धातकी खण्डमें नहीं है। पूरे पहियाके समान धातकी खण्डमें अरोंके स्थानपर पर्वत पड़े हुये हैं। और ( अरविवर ) रीते स्थानोंपर भरत आदि क्षेत्र रचे हुये हैं । जम्बूद्वीपमें हिमवान् , महाहिमवान , आदि पर्वतोंकी जितनी चौडाई है, उससे ठीक दूनी धातकी खण्डके हिमवान् आदि पर्वतोंकी चौड़ाई है। धातकी खण्डमें भी हिमवान् आदि पर्वत भीतके समान नीचे ऊपर एकसे और लवण समुद्रके अन्तिम भागसे प्रारम्भ कर कालोदधि समुद्रके आदि भागतक समान एकसी चौडाईको लिये हुये लम्बे पडे हुये हैं। पूर्व धातकी खण्ड और पश्चिम धातकी खण्ड ये दो विभाग करनेके लिये धातकी खण्डके दक्षिण और उत्तर प्रान्तमें हजार योजन चौडे चार सौ योजन ऊंचे चार लाख योजन लम्बे ऐसे दो इवाकार पर्वत पडे हुये हैं । जम्बूद्वीपके पर्वतोंसे धातकी खण्डके हिमवान् आदि पर्वतोंकी चौडाई ठीक दूनी है और पर्वतोंकी संख्या भी दूनी है । प्रत्युत दो इवाकार पर्वत और भी अधिक है । जम्बूद्वीपमें छह पर्वत हैं तो धातकी खण्डमें दो इष्वाकारों सहित चौदह पर्वत हैं । जम्बूद्वीपमें हिमवान् आदि. पर्वतोंने दक्षिण, उतर, चवालीस हजार दो सौ दस और दस बटे उन्नीस योजन आकाशको घेर रक्खा है। छहों पर्वतोंकी शलाकायें चौरासी हैं । एक सौ नव्यै शलाकाओंके लिये