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तत्वार्यश्लोकवार्तिके
पहुंच जाती है । चींटी, सूहर, गीध आदिके प्रयक्षोंसे भी अधिक अतिशयधारी जीवोंके प्रत्यक्ष प्रसिद्ध हो रहे हैं। यंत्र द्वारा हजारों कोस दूरके शब्द सुने जा सकते हैं । अभ्यास अनुसार मानसबान भी बढता जाता है।
लिङ्गागमादिविज्ञानं ज्ञानसामन्यमेव वा।
तथा साध्यं वदंस्तेन दोषं परिहरेत्कथम् ॥ २५॥
मीमांसक ही कह रहे हैं कि यदि ज्ञानपदसे ज्ञापकलिंगजन्य अनुमानज्ञान या आगमज्ञान, अर्थापत्ति बादि विज्ञान पकडे जायेंगे अथवा जैनोंद्वारा सामान्यरूपसे चाहें कोई भी विज्ञान लिया जायगा, तो भी इन अनुपान आदि ज्ञानरूप पक्षमें तिस प्रकार परमप्रकर्ष प्राप्तिरूप साध्यको कह रहा जैन विद्वान् भी तिस सिद्ध साधनकरके हो रहे दोषको भला कैसे निवारण कर सकेगा ! अर्थात्-अनुपान ज्ञान बढते बढते मी कात्यायन आदिकों का सबसे बढ़ा हुआ अनुगन हम मीमा. सक स्वीकार करते हैं । मनु, जैमिनिको बढा हुआ आगमका प्रकृष्ट ज्ञान भी हम अभीष्ट करते हैं। अतः गीध, गरुड, सूहर, चींटी आदिक जीव चक्षु, कर्ण, घ्राण इन्द्रियोंद्वारा जैसे इन्द्रियजन्य बानोंकी ही प्रकर्षताको प्राप्त कर रहे हैं, उसी प्रकार कात्यापन, जैमिनि आदिक विद्वान् भी स्वविषयका अतिक्रमण नहीं करते हुए अनुमान, आगम दोनोंकी प्रकर्षताको प्राप्त कर रहे हैं। अन्य सामान्य ज्ञानोकी भी लोकमें यथायोग्य प्रकर्षतायें देखी जा रही हैं । अतः फिर. भी जैनोंके ऊपर सिद्धसाधन दोष तैसाका तैसा ही अवस्थित रहा।
अक्रमं करणातीतं यदि ज्ञानं परिस्फुटम् । धर्मीष्येत तदा पक्षस्याप्रसिद्धविशेष्यता ॥ २६ ॥ स्वरूपासिद्धता हेतोराश्रयासिद्धतापि च ।
तन्नैतत्साधनं सम्यगिति केचित्प्रवादिनः ॥२७॥
मीमांसक ही कहे जा रहे हैं कि पक्ष किये गये ज्ञानपदसे यदि क्रमरहित यानी युगपत् ही सम्पूर्ण पदार्थों को जाननेवाला और इन्द्रियोंकी कारणतासे अतिक्रान्त हो रहा ऐसा परिपूर्ण विशदज्ञान धर्म इष्ट किया जायगा, तब तो पक्षका अप्रसिद्धविशेष्यता नामका दोष होगा। भावार्थ-अक्रम और करणातीत परिपूर्ण विशद इन तीन विशेषणोंसे सहित हो रहा कोई विशेष्यभूतज्ञान आजतक भी प्रसिद्ध नहीं है । अतः हेतु विशेष्यासिद्ध है । और उक्त प्रकार माननेपर आप जैनोंद्वारा कहा गया तरतमभावसे आक्रान्तपना हेतु तो स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है। क्योंकि वह हेतु वैसे पक्षमें वर्त रहा नहीं देखा जा रहा है । तथा तारतम्यसे आरूढपना हेतु आश्रयासिद्ध हेत्वाभास भी है । क्योंकि इन्द्रियोंकी सहायता विना ही हो रहा और युगपत् सबको