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तत्वार्थचिन्तामणिः
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त्रिकाल, त्रिलोकवी पदार्थोको युगपत् जाननेवाले सर्वज्ञ वीतराग देव किसी पदार्थमें रागी नहीं होनेके कारण उनका उपादान नहीं करते हैं । और किसी भी पदार्थमें द्वेष नहीं रखनेके कारण उनका त्याग नहीं करते हैं । किन्तु सर्वज्ञ आत्माओंके सम्पूर्ण पदार्थोंमें उपेक्षामाव है | तभी तो स्वामी श्री समन्तभदाचार्यने " आप्तमीमांसा " में लिखा है कि " उपेक्षा फलमाघस्य शेषस्यादानहानधीः । पूर्वा वाऽज्ञाननाशो वा सर्वस्यास्य स्वगोचरे " केवलज्ञानका फल उपेक्षा करना है। शेष चारज्ञान और तीन कुज्ञानों का फल अपने विषयोंमें उपादान बुद्धि और त्याग बुद्धि करा देना है। उपेक्षा भी फल है। हां, अज्ञानोंका नाश तो सभी ज्ञानोंसे हो जाता है। पदार्थोकी जिहासा और उपादित्सा होनेपर द्वेषी, रागी, जीवोंकी पदार्थोंमें त्याग और ग्रहणके लिये निवृत्ति, प्रवृत्तियां होती हैं। किन्तु वे केवलज्ञानी सर्वत्र तो कृतकृत्य हो चुके हैं । अतः उनकी किसी भी पदार्थमें हान, उपादान करनेके लिये निवृत्ति या प्रवृत्ति नहीं होती है । अतः उपायसहित कतिपय हेय और उपादेय तत्वोंको ही जाननेवाला सर्वज्ञ है। यह मीमांतकोंका कथन करना प्रशंसनीय नहीं है । उनकी दृष्टिसे सभी पदार्थ उपेक्षणीय हैं, वे सबको एकसा समान रूपसे जानते रहते हैं।
विनेयापेक्षया हेयमुपादेयं च किंचन । सोपायं यदितेऽप्याहुस्तदोपेक्ष्यं न विद्यते ॥ ११ ॥ निःश्रेयसं परं तावदुपेयं सम्मतं सताम् । हेयं जन्मजरामृत्युकणि संसरणं सदा ॥ १२ ॥ अनयोः कारणं तस्याद्यदन्यत्तन्न विद्यते । पारंपर्येण साक्षाच वस्तूपेक्ष्यं ततः किमु ॥ १३ ॥
यदि वे मीमांसक लोग यों कहें कि सर्वज्ञकी दृष्टि में भले ही कोई पदार्थ हेय और उपादेय नहीं होवे, किन्तु उपदेश प्राप्त करने योग्य विनयशाली शिष्यों की अपेक्षासे कोई त्यागने योग्य पदार्थ तो हेय हो जावेगा और शिष्योंकी दृष्टि से ग्रहण करने योग्य कोई कोई पदार्थ उपादेय बन जायगा। उन हेय, उपादेय पदार्थोके उपाय भी जगत्में प्रसिद्ध हो रहे हैं । इस प्रकार उपाय सहित हेय, उपादेय, तत्वोंका जान लेना ही सर्वज्ञताके लिये पर्याप्त है। इस प्रकार भी जो वे मीमांसक कह रहे हैं, अब हम जैन कहते हैं कि तब तो यानी रागी, द्वेषी, शिष्योंकी अपेक्षा करके ही यदि हेय, उपादेय, तत्त्वोंका जानना सर्वज्ञके लिये आवश्यक बताया जायगा तो जगत्में कोई उपेक्षा ( रागद्वेष नहीं करने योग्य ) का विषय कोई पदार्थ नहीं ठहरता है । देखिये, परमात्म अवस्थास्वरूप उत्कृष्ट मोक्ष तो सजन पुरुषोंके यहां उपादान करने योग्य भले प्रकार मानी गयी है। और सर्वदा ही जन्म, बुढापा, मृत्यु, रोग आदिक बाधाओंसे घिरा हुआ यह संसार तो