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तत्त्वार्थकोकवार्तिके
साधनेमें सामर्थ्य मानी गयी है । हां, इनमें कुछ विशेषण लगा देनेसे आत्माके क्रियाकी सिद्धि हो सकती है। प्रकृतमें जब क्रिया हेतुगुणाश्रयत्वहेतु आमाके क्रियावस्वको साधनेमें समर्थ है, तो प्रतिबादीके सम्पूर्ण कथन दूषणाभास हो जाते हैं । अर्थात्-जैन सिद्धान्त अनुसार विशेष बात यह है कि क्रियाहेतुगुणाश्रयत्वका क्रियावत्व हेतुके साथ अविनाभाव ठीक ठीक घटित नहीं होता है। देखिये, पुण्यशाली जीवोंका यहां सहारनुपरमें बैठे हुये आत्माके साथ बन्धको प्राप्त हो रहा पुण्यकर्म सैकडों, हजारों, कोस, दूर स्थित हो रहे वस्त्र, चांदी, सोना, फल, मेवा, यंत्र, पान, आदि पदार्थाका भाकर्षण कर लेता है। पापी जीवोंका पाप कांटे, विसैली वस्तु आदिमें क्रिया उत्पन कर निकटमें घर देता है । कालद्रव्य स्वयं क्रियारहित होता हुआ भी अनेक जीव, पुद्गलोंकी क्रियाको करनेमें उदासीन कारण बन जाता है । अप्राप्य आकर्षक चुम्बक पाषाण दूरवर्ती लोहेमें गतिको करा रहे क्रियाहेतुगुण आकर्षकत्वका आश्रय बना हुआ है। शरीरमें कई धातु, उपधातु, स्ववं क्रियारहित भी होती हुई उस समय अन्य रक्त, वायु, नसे आदिकी क्रियाका कारण हो ही जाती है । क्रियाके हेतु गुणको धारनेवाळे पदार्थोको एकान्तसे क्रियावान् माननेपर बनवस्था दोष भी हो जाता है। बस्तु. यहां नैयायिक जो कुछ कह रहे हैं, एक बार उनकी सम्पूर्ण बातोंको सुन लेना चाहिये ।
तत्रैव प्रत्यवस्थानं वैधयेणोपदय॑ते । यः क्रियावान्स दृष्टोत्र क्रियाहेतुगुणाश्रयः ॥ ३२७ ॥ यथा लोष्ठो न चात्मैवं तस्मानिष्क्रियः एव सः। पूर्ववद्दषणाभासो वैधर्म्यसम ईक्ष्यताम् ॥ ३२८ ॥
साधर्म्यसम, वैधय॑सम, जातिको कहनेवाले गौतम सूत्रके उत्तरदल अनुसार दूसरी वैधघसम जातिका लक्षण यह है कि तहाँ आत्मा क्रियावान् है, क्रियाके हेतु हो रहे गुणका आश्रय होनेसे, जैसे कि डेल । इस अनुमानमें ही साध्य के विधर्मापन करके प्रतिवादी द्वारा दूषण दिखलाया जाता है कि जो क्रियाके कारण हो रहे गुणका आश्रय यहां देखा गया है, वह क्रियावान अवश्य है, जैसे कि फेंका जा रहा डेल है | किन्तु आत्मा तो इस प्रकार क्रियाके कारण बन रहे गुणका आश्रय नहीं है। तिस कारणसे वह आत्मा क्रियारहित दी है। नैयायिक कहते हैं कि यह प्रतिवादीका कथन मी पूर्व साधर्म्यसम जातिके समान हो रहा वैध→सम नामका दोषामात ही देखा जायगा । क्रियावान के बाधर्म्यसे आत्मा क्रियावान् पदार्थके वैधय॑से आत्मा क्रियारहित नहीं होय, इसमें कोई विशेष हेतु नहीं है । यह प्रतिवादीका वैध→सम प्रतिषेध है।
क्रियावानात्मा क्रिया हेतुगुणाश्रयत्वाल्लोष्ठवदित्यत्र वैधम्र्येण प्रत्यवस्थानं,यः क्रियाहेतुगुणाश्रयो लोष्ठः स क्रियावान् परिच्छिन्नो दृष्टो न च तथात्मा तस्मान्न लोष्ठवक्रिया.