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________________ तत्वार्थकोकवार्तिके नहीं कह रहा यह वादी ( प्रतिवादी ) भला किसका अवलम्ब लेकर परपक्षके प्रतिषेधको कहे । अतः निगृहीत हो जाता है। अब उस अननुभाषण निग्रहस्थानके विषयमें श्री विद्यानन्द आचार्य यह विचार उठाते हैं कि वादीद्वारा कहे गये सभी वक्तव्य का उच्चार नहीं करना क्या प्रतिवादीका अननुभाषण नामक निग्रहस्थान है ? अथवा क्या जिस उच्चारणके साथ साध्यसिद्धिका अविनाभाव अभीष्ट किया गया है, साध्यको साधनेवाले उस वाक्यका उच्चारण नहीं करना प्रतिवादीका अननुभाषण निग्रहस्थान है ? बताओ । ४१० यन्नांतरीयका सिद्धिः साध्यस्य तदभाषणं । परस्य कथ्यते कैश्चित् सर्वथाननुभाषणं ॥ २३३ ॥ द्वितीय पक्षके अनुसार किन्हींका कहना है कि जिस उच्चारणके बिना प्रकृत साध्यकी सिद्धि नहीं हो सकती है, सभी प्रकारोंसे उस वक्तव्यका नहीं कहना दूसरे प्रतिवादीका अननुभाषण निग्रहस्थान हुआ, किन्हीं विद्वानों करके कह दिया जाता है । प्रागुपन्यस्य निःशेषं परोपन्यस्तमंजसा । प्रत्येकं दूषणे वाच्ये पुनरुच्चार्यते यदि ॥ २३४ ॥ तदेव स्यात्तदा तस्य पुनरुक्तमसंशयम् । नोच्चार्यते यदा त्वेतत्तदा दोषः क गद्यते ॥ २३५ ॥ तस्माद्यद्दष्यते यत्तत्कर्मत्वादि परोदितम् । तदुच्चारणमेवेष्टमन्योच्चारो निरर्थकः ॥ २३६ ॥ प्रथम पक्ष अनुसार वादी द्वारा कह दिये गये सभीका उच्चारण करना प्रतिवादी के लिये उचित समझा जाय यह तो युक्त नहीं है । क्योंकि अगले वादीके सम्पूर्ण कहे गये का प्रत्युच्चारण नहीं भी कर रहे प्रतिवादी द्वारा दूषणका वचन उठानेमें कोई व्याघात नहीं पडता है । अन्यथा प्रतिवादीकी बडी आपत्ति आ जायगी। प्रथम तो प्रतिवादीको अगले द्वारा कहे गये सम्पूर्ण कथनका ताविक रूपसे शीघ्र उपन्यास करना पडेगा, पुनः प्रत्येकमें दूषण कथन करनेके अवसरपर उनका प्रतिवादी द्वारा उच्चारण यदि किया जायगा तब उस प्रतिवादीका वह पुनः कथन ही संशयरहित होकर पुनरुक्त निग्रहस्थान हो जायगा और जब वादीके कहे गये का प्रतिवादी उच्चारण नहीं करता है, तब तो तुम नैयायिक अननुभाषण दोष उठा देते हो, ऐसी दशा में प्रतिवादी भला कहां क्या कहे ! तिस कारणसे सिद्ध होता है कि वादीके सर्व कथनका उच्चारण करना प्रतिवादीको आवश्यक नहीं ।
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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