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तत्वार्यश्लोकवार्तिके
साधनावयबोनेकः प्रयोक्तव्यो यथापरः। तथा दोषोपि किं न स्यादुद्भाव्यस्तत्र तत्त्वतः ॥ १७६ ॥ तस्मात्प्रयुज्यमानस्य गम्यमानस्य वा स्वयं । संगरस्याव्यवस्थानं कथाविच्छेदमात्रकृत् ॥ १७७ ॥
जिस प्रकार कि वादीके हेतुका विरुद्ध दोष उठा देना प्रतिवादीके पक्षकी अच्छी सिद्धि हो जाना है, उसी प्रकार वादी द्वारा अविनाभावी हेतुका कथन करदेना वादीके स्वार्थकी सिद्धि हो जाना है। जिस प्रकार कि वादीद्वारा साधनके अनेक दूसरे अवयवोंका प्रयोग करना उचित है, उसी प्रकार प्रतिवादी द्वारा वास्तविक रूपसे अनेक दोषोंका उत्थापन करना भी समुचित क्यों नहीं होगा ! तिस कारणसे सिद्ध हो जाता है कि चाहे प्रतिज्ञा स्वयं कंठोक्त प्रयुक्त की जा रही होय अथवा बौद्धोंके यहां विना कहे यों ही ( अर्थापत्ति द्वारा ) जान ली गयी होय, उस प्रतिज्ञाकी जो उक्त तीन निग्रहस्थानोंद्वारा व्यवस्था नहीं होने देना है । वह केवल निग्रहस्थान देकर वादमें विघ्न डाल देना मात्र है। यों केवल कथाका विच्छेद कर देनेसे प्रतिवादीद्वारा वादीका पराजय होना सम्भव नहीं है।
___ संगरः प्रतिज्ञा तस्य वादिना प्रयुज्यमानस्य पक्षधर्मोपसंहारवचनसामर्थ्याद्गम्यमानस्प वा यदव्यवस्थानं स्वदृष्टांते प्रतिदृष्टांतधर्मानुज्ञानात् प्रतिज्ञातार्थप्रतिषेधेन धर्मविकल्पात तदर्यनिर्देशादा प्रतिज्ञाहेत्वोविरोधात् प्रतिज्ञाविरोधाद्वा प्रतिवादिनापद्यत तत्कथाविच्छेदमा करोति न पुनः पराजयं वादिनः स्वपक्षस्य प्रतिवादिनावश्यं साघनीयत्वादिति न्यायं बुध्यामहे ।
कोषके अनुसार संगरका अर्थ प्रतिज्ञा है । उस प्रतिज्ञा वचन नामक संगरका वादीकरके कंठोक्त प्रयोग किया जा रहा होय, अथवा पक्षमें हेतुरूप धर्मके उपसंहार (धेर देना जैसे वाडेमें पशुओंको घेर दिया जाता है ) करनेके कथनकी सामर्थ्यसे अर्थापत्तिद्वारा यों विना कहे उसको जान लिया गया होय, ऐसी प्रतिबाकी जो ठीक ठीक व्यवस्था नहीं होने देना है, वह. केवळ छेडी हुई वाद कथाका अवसान कर देना है। इसमें रहस्य कुछ नहीं है । मळे ही स्वकीय दृष्टान्त में वादीद्वारा प्रतिवादीके प्रतिकूळ दृष्टान्तके धर्मकी स्वीकारता करनारूप प्रतिज्ञाहानिसे प्रतिज्ञाकी अव्यवस्था कर लो और चाहे प्रतिज्ञात अर्थका निषेध कर धर्मान्तरके विकल्पसे उस प्रतिज्ञातार्थका निर्देश करना स्वरूप दूसरे प्रतिज्ञान्तर निग्रहस्थानसे वादीकी प्रतिज्ञाका अव्यवस्थान कर लो अथवा प्रतिज्ञा और हेतुके विरोधस्वरूप तीसरे प्रतिज्ञाविरोध नामक निग्रहस्थानसे प्रतिवादी द्वारा वादीके