________________
१६
तत्वार्थश्लोकवार्तिके
शेष बचे हुये मनुष्य तिय चोंके तो बहिरंगकारण क्षयोपशमको ही निमित्त मानकर अवधिज्ञान होता है । इस प्रकार अवधारण करनेसे शेष जीवोंके अवधिज्ञानमें भवप्रत्ययपनेकी व्यावृत्ति हो जाती है। और शेष जीवोंके ही क्षयोपशमनिमित्त अवधि होती है, इस प्रकार नियम करनेसे देव नारकियोंके अवधिज्ञानमें गुणप्रत्ययपनेका व्यवच्छेद हो जाता है । तिस कारण दोनों भी उद्देश्य, विधेयदलोंमें उक्त प्रकारसे अवधारण करनेपर कोई दोष नहीं आता है, प्रत्युत गुण ही है।
क्षयोपशमनिमित्तोऽवधिः शेषाणामित्युभयत्रानवधारणाच्च नाविशेषतोऽवधिस्तिर्यमनुष्याणामन्तरङ्गस्य तस्य कारणस्य विशेषात् । तथा पूर्वत्रानवधारणाबहिरंगकारणाव्यवच्छेदः । परत्रानवधारणाद्देवनारकाव्यवच्छेदः प्रसिद्धो भवति ।
तथा शेष जीवोंके अवधिज्ञान तो क्षयोपशमको निमित्त पाकर हो जाता है, इस प्रकार दोनों ही दलोंमें अवधारण नहीं करनेसे सभी अवधिज्ञानी तिर्यंच और मनुष्यों के विशेषताओंसे रहित एकसी अवधि नहीं हो पाती है। क्योंकि उस अवधिज्ञानके अन्तरंगकारण हो रहे ज्ञानावरणकर्मके क्षयोपशमकी प्रत्येक जीवोंमें विशेषताएं हैं । दूसरी बात यह भी है कि पहिले दलमें अवधारण नहीं करनेसे बहिरंगकारण हो रहे गुणोंका भी व्यवच्छेद नहीं हो पाता है । क्योंकि क्षयोपशमके प्रसिद्ध हो रहे एक ही अर्थके अनुसार अवधिज्ञानावरणके क्षयोपशमको ही पकडा जायगा, ऐसी दशामें एवकार यदि कगा दिया जाता तो बहिरंगकारण गुणका भी व्यवच्छेद हो जाता। किन्तु गुणको बाहिरंगकारण इस सूत्र द्वारा अवश्य कहना है । अतः पहिले दळमें अवधारण मत डालो । तथा उत्तरदलमें अवधारण नहीं करनेसे देव और नारकियोंका व्यवच्छेद नहीं होना प्रसिद्ध हो जाता है। भावार्य-शेष रहे मनुष्य, तिर्थचोंके समान देव, नारकियोंके भी अवधिज्ञानाबरणका क्षयोपशम अन्तरंगकारण है । अतः दोनों ओर अवधारण नहीं करनेसे भी प्रमेयका लाभ रहा । " विविधभङ्गगहनं जिनशासनम् "।
षड़िकल्पः समस्तानां भेदानामुपसंग्रहात् । परमागमसिद्धाना युक्त्या सम्भावितात्मनाम् ॥ १० ॥
सर्वज्ञधाराप्राप्त परमागममें प्रसिद्ध हो रहे और पूर्व कहीं गई युक्तियों करके सम्भावितस्वरूप हो रहे, देशावधि आदि सम्पूर्ण भेदोंका निकट संग्रह हो जानेसे अवधिज्ञानके अनुगामी मादिक छह विकल्प हैं । अवधिज्ञान के अन्य भेदप्रभेदोंका इन्हींमें अन्तर्भाव हो जाता है।
अनुगाम्यननुगामी वर्द्धमानो हीयमानोऽवस्थितोऽनवस्थितः इति षडिकल्पोऽवधि: संप्रतिपाताप्रतिपातयोरत्रैवान्तर्भावात् ।
अनुगामी, अननुगामी, वर्द्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित, इस प्रकार अवधि