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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके नेह्य जनोंके लिये युष्मद् शब्दका प्रयोग श्रेष्ठ है । कहांतक कहा जाय वाचक शब्दोंकी शक्तियां विलक्षण हैं । अतः सूत्रकार महाराजका उक्त प्रकार गंभीर शब्दका उच्चारण करना साभिप्राय है। क्षयोपशम इत्यन्तरंगो हेतुः सामान्येनाभिधीयमानस्तदावरणापेक्षया व्यवतिष्ठते स च सकलक्षायोपशमिकज्ञानभेदानां साधारण इति । यथेह पद्विधस्यावधेनिमित्तं तथा पूर्वत्र भवप्रत्ययेऽवधौ श्रुते मतो चावसीयते । वक्ष्यमाणे च मनःपर्यये स एव तदावरणापेक्षयेति सत्रितं भवति । ___ "क्षयोपशम " इस वाक्यके स्वतंत्र तीन भेद नहीं करनेपर ही ज्ञानावरणोंका क्षयोपशम इस प्रकार एक अंतरंगहेतु ही सामान्यरूप करके कहा गया होता संता उन उन ज्ञानोंके आवरणोंकी अपेक्षा व्यवस्थित हो जाता है और वह क्षयोपशम तो सम्पूर्ण चारों क्षायोपशमिक ज्ञानके मेदोंका साधारण कारण है । इस प्रकार भेद, प्रभेदसहित चार ज्ञानोंके सामान्यरूपसे एक अंतरंग कारणको कानेका भी सूत्रकारका अभिप्राय है । जिस प्रकार प्रकृत सूत्रमें अनुगामी आदिक छह प्रकारके अवधिज्ञानका साधारण अन्तरंगनिमित्त क्षयोपशम विशेष कहा गया है, उसी प्रकार पूर्वमें कहे गये मवहेतुक अवधिज्ञानमें और उसके पहिले कहे गये श्रुतज्ञानमें तथा उसके भी पहिले कहे गये मतिज्ञानमें भी अंतरंगकारण क्षयोपशमका निर्णय कर लिया गया है । तथा भविष्य ग्रन्थमें कहे जानेवाले मनःपर्यय ज्ञानमें भी उस मनःपर्ययावरण कर्मकी अपेक्षासे उत्पन्न हुआ वह क्षयोपशम हो अन्तरंग कारण है । यह सब लम्बा चौडा भुगतान् इस छोटेसे सूत्रमें ही उमास्वामी महाराजने मर दिया है। छोटेसे सूत्रसे सभी अभिप्राय सूचित हो जाता है । मुख्यस्य शब्दस्याश्रयणात्सर्वत्र बहिरंगकारणप्रतिपादनाच्च मुख्यगौणशब्दप्रयोगो युक्तोऽन्यथा गुणप्रत्ययस्यावधेरपतिपत्तेः । ___ यहां उपचारित नहीं किंतु मुख्य हो रहे क्षयोपशम शब्दका आश्रय करलेने और सभी ज्ञानोंमें बहिरंगकारणोंका प्रतिपादन करनेसे यहां मुख्यशब्दका प्रयोग और गौण शब्दका प्रयोग करना युक्तिपूर्ण होता हुआ समुचित है । अर्थात् -पुख्पशब्दका आश्रय करनेसे सब ज्ञानोंके अंतरंगकारणोंका निर्णय हो जाता है, और उपचरित क्षयोपशम शब्द के प्रयोग कर देनेसे मनुष्य तिर्थचोंकी अवधिका बहिरंगकारण प्रतीत हो जाता है । अन्यथा यानी उपचरित शब्दका प्रयोग किये विना क्षायिकसंयम आदि गुणस्वरूप बहिरंग कारणोंसे उपजनेवाले अवधिज्ञानकी प्रतीति नहीं हो सकती थी। इस प्रकार श्री विद्यानन्द आचार्यने इस श्री उमास्वामी महाराजके सूत्रका बहिरंग कारणोंको प्रतिपादन करनेवाला अच्छा माष्य-अर्थ कर दिया है। यह सूत्र गुणप्रत्यय अवधिके बहिरंगकारण और चारो ज्ञानोंके अन्तरङ्गकारणका भी प्रतिपादक है।
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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