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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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नामादयोपि चत्वारस्तन्मूलं नेत्यतो गतं । द्रव्यक्षेत्रादयश्चैषां द्रव्यपर्यायगत्वतः ॥ १३ ॥
इस उक्त कथनसे यह भी ज्ञात हो चुका है कि नाम आदिक भी चार उन नयोंके मूल नहीं हैं। और द्रव्य क्षेत्र आदिक विषय भी उन नयोंके उत्पादक मूळ कारण नहीं हैं । अर्थात्नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव, इन चार विषयोंको मूलकारण मानकर नामार्थिक, स्थापनार्थिक, द्रव्यार्थिक, और भावार्थिक ये चार मूळ नय नहीं हो सकते हैं। अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काळ, माव इन विषयोंको मूल कारण मानकर द्रव्यार्थिक, क्षेत्रार्थिक, कालार्थिक, भावार्थिक ये चार मूल नय नहीं हो सकते हैं। क्योंकि इन नाम आदि चारों और द्रव्य, क्षेत्र, आदि चारोंकी द्रव्य और पर्यायोंमें ही प्राप्ति हो रही है। यानी ये सब द्रव्य और पर्यायोंमें अन्तर्भूत हैं । अतः मूळ नेय विषय द्रव्य और पर्याय दो ही हुए, अधिक नहीं।
भवान्विता न पंचैते स्कंधा वा परिकीर्तिताः ।
रूपादयो त एवेह तेपि हि द्रव्यपर्ययौ ॥ १४ ॥
द्रव्य, क्षेत्र, आदि चारके साथ भवको जोड देनेपर हो गये पांच भी मूल नेय पदार्थ नहीं हैं । अर्थात्-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव, इन पांचको विषय करनेवाली मूळ नय पांच नहीं हो सकती हैं । अथवा बौद्धोंने रूप आदिक पांच स्कन्धोंका अपने ग्रन्थोंमें चारों ओरसे निरूपण किया है, वे मी मूळ नेय विषय नहीं हैं । अर्थात्-रूपस्कन्ध, वेदनास्कन्ध, विज्ञानस्कन्ध, संज्ञास्कन्ध और संस्कारस्कन्ध इन पाच विषयों को मानकर मात्र मूळनय नहीं हैं। क्योंकि वे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, और भाव तथा रूपस्कन्ध आदि पांच भी यहां नियमसे द्रव्य और पर्यायस्वरूप ही है, पांचोंका दोमें ही अन्तर्माव हो जाता है। अतः दो ही द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक मूळ नय है, अधिक नहीं हैं।
तथा द्रव्यगुणादीनां षोढात्वं न व्यवस्थितं । षट् स्युर्मूलनया येन द्रव्यपर्यायगाहिते ॥१५॥
तिसी प्रकार वैशेषिकोंके यहां माने गये द्रव्य, गुण, आदिक माव पदार्थोंका छह प्रकारपना भी स्वतंत्र लत्त्वपनेसे व्यवस्थित नहीं हो सकता है । जिस कारणसे कि उन छह मूल कारण नेय विषयोंको जाननेवाले मूळ नय छह हो जावे । वे द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय ये छहों भाव पदार्थ नियमसे द्रव्य और पर्यायोंमें ही अन्तर्गत हो रहे हैं । अर्थात् द्रव्य आदिक छहों भाव विचारे द्रव्य, पर्याय इन दो स्वरूप ही हैं । अतः दो ही मूलनय हैं, अतिरिक्त नहीं है। 29