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तत्वार्थश्लोकवार्तिके
संवादित्वात्प्रमाणत्वं स्मृत्यादेश्चेत्कथं तु तैः । सिद्धेथें वर्तमानस्य हेतोः संवादिता न ते ॥ ८२ ॥
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सायके सिद्ध हो चुकने पर प्रवर्त हो रहा हेतु अकिंचित्कर है, इस प्रकार किन्हीं विद्वानोंने निरूपण किया है । जैसे कि शद्ब ( पक्ष ) कर्ण इन्द्रियसे सुना जाता है ( साध्य ), शद्वपना होनेसे ( हेतु ), यहां शद्वका श्रावणपना प्रथमसे ही बालगोपालों में प्रसिद्ध है । अतः शद्वत्व हेतु कुछ भी नहीं करनेवाला अकिंचित्कर हेलामास मानलिया है । अत्र श्री विद्यानन्द आचार्य कहते हैं कि स्याद्वादनीतिको धारकर शोभाको प्राप्त हो रहे विद्वानोंकरके अकिंचित्करको हेतुका दोष नहीं विचारना चाहिये | जबकि प्रतिवादीकी ओरसे असिद्ध हो रहे धर्मको साध्य माना जाता है, ऐसी दशामें हेतुका दोष अकिंचित्कर नहीं हो सकता है। या तो वह साध्यका दोष है, अथवा सद्धेतु ही है । सद्धेतु जन्य अनुमान तो प्रमाण होता है । यदि कोई विद्वान् यों कहे कि गृहीतका ही उस हेतु द्वारा ग्रहण हो जानेसे उस हेतु या अनुमानको अप्रमाणपना इष्ट किया जायगा, तब तो हम कहते हैं कि यों तो गृहीतका प्राही होनेसे स्मृति, संज्ञा, तर्क, आदिको भी अप्रमाणपनेका प्रसंग हो जाना मला किसके द्वारा रोका जा सकता है ? यदि सफल क्रियाजनकत्व या बाधारहितपन स्वरूप संवादसे युक्त होनेके कारण स्मृति आदिकको प्रमाणपना कहोगे तो उन प्रमाणोंकरके सिद्ध हो रहे अर्थ में प्रवर्त रहे हेतुका भला तुम्हारे यहाँ सम्बादपिन क्यों नहीं माना जायगा ! ऐसी दशा में पूर्व प्रमाणसे जाने हुये श्रावणपने की शद्वत्व हेतुने पुष्टि की है। अतः वह पूर्व ज्ञानका सम्बादक है । अकिंचित्कर हेत्वाभास नहीं ।
प्रयोजनविशेषस्य सद्भावान्मानता यदि । तदात्पज्ञानविज्ञानं हेतोः किं न प्रयोजनम् ॥ ८३ ॥ प्रमाणसंप्लवस्त्वेवं स्वयमिष्टो विरुध्यते ।
सिद्धे कुतश्चनार्थेन्यप्रमाणस्या फलत्वतः ॥ ८४ ॥
विशेष प्रयोजनका सद्भाव होनेसे यदि स्मृति, प्रत्यभिज्ञान आदिको प्रमाणपना कहोगे तब तो अल्पज्ञानवाले जीवों को शद्वमें श्रावणपने आदिका विशेष ज्ञान हो जाना हेतुका प्रयोजन क्यों नहीं मान लिया जाये ! दूसरी बात यह है कि अकिंचित्करको पृथक् हेत्वाभास माननेवाले विद्वान् हम जैनोंके एकदेशी हैं। उन्होंने एक अर्थ में विशेष विशेषांशको जाननेवाले अनेक प्रमाणोंका प्रवर्त जानारूप प्रमाणसंप्लव स्वयं इष्ट किया है । यदि वे गृहीतको प्रहण करनेसे भयभीत होंगे तो इस प्रकार उनके यहां इष्ट किये गये प्रमाणसंप्लवका विरोध प्राप्त होता है। यानी बे प्रमाण संप्लव