________________
१२२
तत्वार्थश्लोकवार्तिके
हैं, इस प्रकार निश्चय किया जा रहा है। हां, तिस प्रकार व्याख्यान कर देनेपर मति आदिकोंका मिथ्यापन के साथ सद्भाव पाये जानेका कोई विरोध नहीं है। जैसे कि शीतका उष्णके साथ भले ही विरोध होके, किन्तु सामान्य स्पर्शके साथ शीत स्पर्शका कोई विरोध नहीं है। सामान्यरूपसे स्पर्श ही तो शीत या उष्ण होकर परिणमन करेगा । अन्य कोई नहीं।
ननु च तेषां तेन सहभावेऽपि कथं मिथ्यात्वमित्याशंक्योत्तरमाह। . यहां प्रश्न है कि उन मति आदिक ज्ञानोंको उस मिथ्यात्वके साथ सहभाव होनेपर भी मिथ्यापन कैसे प्राप्त हो जाता है ? झूठ बोलनेवाले पुरुषके घरमें आ रहा सूर्य प्रकाश या चन्द्र उद्योत तो झूठा नहीं हो जाता है । इस प्रकार श्री विद्यानंदस्वामी वार्तिकद्वारा किसीकी आशंकाका अनुवादकर उसके उत्तरको स्पष्ट कहते हैं।
मिथ्यात्वोदयसद्भावे तद्विपर्ययरूपता। न युक्ताग्न्यादिसंपाते जात्यहेम्नो यथेति चेत् ॥ १७ ॥ नाश्रयस्यान्यथाभावसम्यक्परिदृढे सति । परिणामे तदाधेयस्यान्यथाभावदर्शनात् ॥ १८ ॥
शंका यों है कि आत्मामें मिथ्याकर्मके उदयका सद्भाव होनेपर उन सर्वथा न्यारे हो रहे झानोंका विपर्ययस्वरूपपना उचित नहीं है । जिस प्रकार कि अग्नि, कीच, धुली आदिका सन्निकर्ष, हो जानेपर या अग्नि, पानी आदिमें गिर जानेपर शुद्ध सौ टंच सोनेका विपरीतपना नहीं हो जाता है। यानी अच्छे सोनेको आग, पानी या कहीं भी डाल दिया जाय वह लोहा या मट्टी, कीचड नहीं बन जाता है । " कानेको चोट कडामरेको भेंट " यह नीति प्रशस्त नहीं है। जब कि आत्मामें सम्यक्त्वगुणसे पृथग भूतज्ञान गुण या चेतनागुण प्रकाश रहा है तो सम्यक्त्वका विपरीत परिणमन हो जानेपर भला ज्ञानगुणमें विपरीतता कैसे आ सकती है ! देवदत्तके चौर्य दोषसे इन्द्रदत्तको कारागृह नहीं मिलना चाहिये । अब आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार तो शंका नहीं करना । क्योंकि आश्रयके अन्य प्रकारसे परिवर्तनरूप परिणामके अच्छे ढंगसे परिपुष्ट हो जानेपर उस आश्रयके आधेयमूत हो रहे पदार्थका अन्य प्रकारसे परिणाम होना देखा जाता है। जब कि सम्पूर्ण गुणोंके शिरोमणि होकर मास रहे सम्यग्दर्शनगुणका अखिल कर्मोमें प्रधान हो रहे मिथ्यात्व कर्मने विपरीत भावकर आत्माको मिथ्यादृष्टि बना दिया है, ऐसी दशामें आत्माके अन्य गुणोंपर भी विपरीतपन आये विना नहीं रह सकता है । पडोसीके घरमें आग लगनेपर निकटवर्तीके छप्परोंवाले घरमें कुशल नहीं रह सकता है । दुष्ट पुरुषोंके घरमें सज्जनके जानेपर प्रभाव पडे विना नहीं रहा सका है । भाग, कीचड, आदिमें पडा हुआ स्वर्ण सौ, पचास,