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-: प्रकृत ग्रंथका समर्पण :परमपूज्य प्रातःस्मरणीय विश्ववंद्य चारित्र वक्रवर्ति आचार्य शांतिसागर महाराज इस वर्ष समस्त विश्वको दुःखसागरमें मग्नकर स्वयं आत्मलीन हुए । आचार्यश्रीने अपनी अंतिम यमसल्लेखनाके समय समाजको भावी मार्गदर्शन के लिए अपना आचार्यपद अपने सुयोग्य प्रथमशिष्य घोर तपस्वी विद्वान मुनिराज वीरसागर महाराजको प्रदान किया । एवं उनके आदेशानुसार चलनेके लिए समाजको आज्ञा दी।
श्री आचार्य वीरसागर महाराज.. . श्रीपरमपूज्य प्रातःस्मरणीय आचार्य वीरसागरजी महाराज वर्तमान युगके महान् संत हैं। वे आचार्य महाराजके प्रथम शिष्य हैं । उनके द्वारा आजपर्यंत असंख्य जीवोंका उद्धार हुआ है, हो रहा है। वे वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, संयमवृद्ध, और अनुभववृद्ध हैं। उनके द्वारा समाजको वस्तुतः सही मार्गदर्शन होगा । बाचार्यश्रीने योग्य व्यक्तिको अधिकारसूत्र दिया है । आज भाप समाजके लिए महान संतके द्वारा नियुक्त अधिकृत आध्यात्मिक पट्टके आचार्य हुए हैं । आचार्य पदालंकृत प्रसंगकी चिरस्मृतिके लिए एवं इस प्रसंगमें प्रथमभेटके रूपमें प्रस्तुत खंडको परमपूज्य आचार्य वीरसागर महाराजके करकमलोंमें समर्पित किया गया है । हमें इस बात का अभिमान है कि संस्थाको इस प्रवृत्तिने एक शुभशकुनका कार्य किया है। आचार्यश्रीका युग चिरंतनमार्ग. प्रभावक एवं लोककल्याणात्मक होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। अपनी बात.
परमपूज्य प्रातःस्मरणीय विद्वद्वर स्व. आचार्य श्री कुंथुसागर महाराजकी पुण्यस्मृतिमें यह ग्रंथमाला चल रही है । आचार्यश्रीने अपने जीवनकाळमें धर्मकी बडी प्रभावना की । जैनधर्मको विश्वधर्मके रूपमें रखने का अनवरत उद्योग किया । तेजोपुंज प्रतिभा, विद्वत्ता, आकर्षणशक्ति, कोमलता, गंभीरता, आदि गुणों के द्वारा आपने विश्वको अपनी ओर खींच लिया था । विश्वकल्याणकी तीव्रतर भावना उनके हृदयमें धर कर गई थी। समाजका दुर्भाग्य है कि असमयमें ही उन्होंने इह लोकसे प्रयाण किया । पूज्यश्रीकी ही स्मृतिमें यह संस्था आपकी सेवा कर रही है। यदि आप संस्थाके महत्व और कार्यगौरवको लक्ष्यमें रखकर इसमें सहयोग प्रदान करें तो यह आपकी इससे भी अधिक प्रमाणमें सेवा करनेमें दक्ष होगी एवं विश्वमें इस प्रभावक तस्वका विपुलाचार होकर कोककल्याण होगा।
विनीतसोलापुर
वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री वीरनिर्वाण सं. २०८२ ।
(विद्यावाचस्पति न्याय-काव्यतीर्थ ) ऑ. मंत्री श्री आचार्य कुंथुसागर ग्रंथमाला सोलापूर.