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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
होनेसे प्रत्यभिज्ञानका दृढपना माना जायेगा, तब तो आत्माके एकपनको साधनेवाले प्रत्यभिज्ञान के समान प्रकरणप्राप्त स्फटिकके एकपनको साधनेवाले प्रत्यभिज्ञान में भी वैसी ही दृढ़ता विद्यमान है । अर्थात् स्फटिक टूटा फूटा नहीं है । वहका वही है यह निर्बाध - प्रतीति है ।
न हि स्फटिका प्रत्यभिज्ञानस्यैकत्वपरामर्शिनः किंचिद्वाधकमस्ति पुरुषादिवत् ।
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स्फटिक, काच आदि विषयों में हो रहे और एकत्वको विचारनेवाले प्रत्यभिज्ञान प्रमाणका बाधक कोई नहीं है । जैसे कि आत्मा, आकाश, आदिके एकत्व प्रत्यभिज्ञानका कोई बाधक नहीं है। यह युवा देवदत्त वही है, जो कि बालकपनमें था । इसी प्रकार यह वही स्फटिक है, ऐसा निर्वाध पक्का प्रत्यवमर्श हो रहा
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तद्भेदनाभ्युपगमे तु बाधकमस्तीत्याह ।
प्रत्युत वैशेषिकों के अनुसार उन स्फटिक, अभ्रक, आदिका छेदन, भेदन स्वीकार करने में बाधक प्रमाण मिल जाता है । इसी बातको आचार्य महाराज स्पष्ट कर कहते
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काचाद्यंतरितानर्थान् पश्यतश्च निरंतरं ।
तत्र भेदस्य निष्ठानान्नाभिन्नस्य करग्रहः ॥ २४ ॥
काच, स्फटिक आदिकसे व्यवहित हो रहे अर्थोको निरंतर दस्तक देखनेवाले पुरुषको उसी अमिन कांच आदिका हाथसे ग्रहण नहीं हो सकेगा। क्योंकि नयन रश्मियोंकरके वैशेषिक मत अनुसार उन काच आदि में फूट जाना प्रतिष्ठित हो चुका है । जो पदार्थ टूट, फूटचुका है, उसी साजे - पदार्थका फिर हाथ द्वारा पकडना नहीं हो सकता है 1
सततं पश्यंती हि काचशिलादीन्नयन रश्मयो निरंतरं भिदंतीति प्रतिष्ठायां कथमभिन्नस्वभावानां तथा तस्य हस्तेन ग्रहणं तच्चेदस्ति तद्भेदाभ्युपगमं बाधिष्यत इति किं नश्चिंतया ।
दो, चार घण्टेतक सतत ही काच शिला, स्फटिकमाला, अभ्रक, आदिको देखती हुई चक्षुरश्मियां अथवा पश्यतः ऐसा पाठ माननेपर तो देखनेवाले पुरुषकी चक्षुरश्मियां निरंतर उनको तोडती, फोडती रहती हैं। इस प्रकार वैशेषिक मन्तव्य अनुसार प्रतिष्ठा हो चुकनेपर यह बताओ कि उन्हीं अभिन्न स्वभाववाले काचशिला, चिमनी, शीशी आदि पदार्थोंका तिसी प्रकार उस देखने वाले हाथ से ग्रहण कैसे हो जाता है ? मुद्गर, मोंगरासे घडेको चकनाचूर कर देनेपर उसी साज़े परिपूर्ण घडेका फिर हाथसे पकडना नहीं होता है। इसी प्रकार घण्टों देरतक दनादन पड रहीं
किरणों द्वारा स्फटिकका छेदन, भेदन हो जानेपर पुनः उन्हीं स्फटिक, काच, आदिका ग्रहण नहीं हो सकेगा, किंतु उन्हीं स्फटिक आदिकोंका वह ग्रहण तो हो रहा देखा जाता है । ऐसा मानने पर वह ग्रहण ही उन स्फटिक आदिके छेदन, भेदनके स्वीकार करनेको बाघ डालेगा ।