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अमवस्थाके निवारणार्य फलमानकी कर्मपनेसे प्रतीतिको न मानकर फलचानके फलपने करके ही प्रतीत हो जानेपर प्रत्यक्षता मान ली जाती है। इस प्रकार मीमांसकोंके कहनेपर तो हम बोलेंगे किं करणज्ञानकी करणपनेसे प्रतीति हो जानेपर उसका प्रत्यक्ष होना मान लो, तथा कर्तापनसे आमाके प्रतीत हो जानेपर आत्माका मी प्रत्यक्ष होना तुम प्रभाकरोंको इष्ट कर लेना चाहिये । अर्थात्-जो कर्म है, उसका ही प्रत्यक्ष होता है। यह एकान्त तो नहीं रहा। प्रभाकरोंके यहां फल ज्ञानको कर्म नहीं भी माना गया है, फिर भी उसका प्रत्यक्ष हो जाता है । उसी फलबानके समान करणवान और आत्माका भी प्रत्यक्ष हो जाओ । तथा मटोंके यहां भी कर्मको जाननेकी व्याप्ति जब न रही तो आत्माके प्रत्यक्ष हो जाने समान फलबान और करणबानका भी प्रत्यक्ष होजाओ, स्वसंवेदन द्वारा वे भी अपनेको स्वयं जान लेवें ।
तथा च न परोक्षत्वमात्मनो न परोक्षता । करणात्मनि विज्ञाने फलज्ञानत्ववेदिनः ॥ ५२॥
तिस कारण आत्माका परोक्षपना नहीं घटित होता है और करणस्वरूप प्रमाणशानमें भी परोक्षपना नहीं आता है । फलबानका प्रत्यक्षवेदन माननेवाले प्रभाकरको आत्मा और करण ज्ञानका स्वसंवेदन प्रत्यक्ष होना अमीष्ट करना चाहिये, कोरा भाग्रह करना व्यर्थ है । भट्टके समान प्रभाकरको भी अपने व्याघातक मार्गका परित्याग कर देना चाहिये । ।
साक्षात्करणज्ञानस्य करणत्वेनात्मनि स्वकर्तृत्वेन प्रतीतावपि न प्रत्यक्षता, फलमानस्य फळत्वेन प्रतीतो प्रत्यक्षमिति मतं ब्याहतं । ततः स्वरूपेण स्पष्टपतिभासमानत्वात् करणज्ञानमात्मा वा प्रत्यक्षः स्यादादिना सिद्धः फलज्ञानवत् ।।
करणवानकी करणपने करके साक्षात् प्रत्यक्षरूप प्रतीति होनेपर भी और आत्माकी कर्त्तापनसे विशद प्रतीति होनेपर भी उन करणज्ञान और आत्माका प्रत्यक्ष होना नहीं माना जाता है । किंतु फलज्ञानकी फलपनेसे प्रतीति होनेपर भी उसका प्रत्यक्ष होना पक्षपातवश मान लिया जाता है। इस प्रकार प्रमाकरोंका मत व्याघात दोषयुक्त है । अर्थात्-प्रमिति क्रियाका कर्मपना न होनेसे यदि प्रमाणात्मक करणज्ञान और आत्मा प्रमाताका प्रत्यक्ष न मानोगे तो फलज्ञानका मी प्रत्यक्ष होना नहीं मानो तथा यदि फलज्ञानका प्रत्यक्ष मानते हो तो करणज्ञान और आत्माका भी प्रत्यक्ष मानो, अधूरी बात माननेमें व्याघात आंवेगा । तिस कारण फलज्ञानके समान अपने स्वरूप करके ही स्पष्ट प्रतिमास रहे होनेके कारण करणज्ञान अथवा आत्मा स्याद्वादियोंके यहाँ प्रत्यक्षस्वरूप सिद्ध हैं । वही प्रभाकर मीमांसकोंको अनुकरणीय है।
ज्ञानं ज्ञानांतरावचं स्वात्मज्ञप्तिविरोधतः। प्रमेयत्वायथा कुंभ इत्यप्यश्लीलभाषितम् ॥५३॥