________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
इस प्रकार सम्पूर्ण हेतुओंके भेद प्रभेदोंका उपलब्धि और अनुपलब्धिमें ही अंतर्भाव होना प्रतिभास रहा है। क्योंकि संक्षेपसे उन दो भेदोंके ही वे सब कार्य आदिक, भूत आदिक, वीत आदिक प्रभेद हैं । इस प्रकार वह दो भेदोंका इष्ट करना ही श्रेष्ठ है । कार्य, कारण, आदिक तथा संयोगी, समवायी, एकार्थसमवायी, और विरोधी तथा पूर्ववत् आदिक अथवा वीत आदिक ये सब हेतुओंके विशेष उन दो भेदोंसे न्यारे नहीं हो रहे हैं। क्योंकि कार्य आदिकोंको उपलब्धि-अनुपलब्धि का प्रभेद रहितपना प्रतीत नहीं हो रहा है । प्रत्युत कार्य आदिकोंसे अतिरिक्त अन्य भी पूर्वचर, व्यापक व्यापकविरुद्ध आदिक अनेक हेतु भी उपलब्धि और अनुपलब्धिके बडे पेटमें समाजाते हैं।
ननूपलभ्यमानत्वमुपलंभो यदीष्यते । तदा स्वभावहेतुः सद्यवहारप्रसाधने ॥ २११ ॥ अथोपलभ्यते येन स तथा कार्यसाधनः। समानोनुपलभेपि विचारोयं कथं न ते ॥ २१२ ॥
जैनोंद्वारा माने गये हेतुके दो भेदोंपर बौद्धोंको शंका है कि उपलंभ शब्दका अर्थ यदि कर्म अर्थकी प्रतिपत्ती कराते हुए घञ् प्रत्ययकर उपलम्भ किया गयापन इष्ट किया गया है, तब तो खभाववान्के सद्भावके व्यवहारको अच्छा साधनेमें वह उपलम्भ हेतु स्वभावहेतु ही हुआ और यदि अब उपलम्भ किया जाय, जिसकरके वह उपलम्भ है, तैसा करणमें घञ् प्रत्यय करमेपर उपलम्भ बनाया जायगा, तो उपलम्भहेतु कार्यहेतु क्यों नहीं तुम जैनोंके यहां बन जाधेगा ? फिर कार्य और स्वभावके अतिरिक्त उपलम्भ हेतुके माननेकी क्या आवश्यकता है ! यह विचार अनुपलम्भ शद्बमें भी कर्मसाधन और करणसाधन व्युत्पत्ति करनेपर समानरूपसे लागू होता है। अतः तुम्हारे यहां कार्य, स्वभाव अनुपलम्भ हेतुओंमें ही सर्वहेतुओंका अन्तर्भाव क्यों नहीं कर लिया जाता है । यह उपलम्भ अनुपलम्भका क्यों ढोंग रचा जाता है । तुम्ही हम बौद्धोंकी ओर झुक आओ, जैसे कि हमें अपनी ओर खींचते हो।
यापलंभः कर्मसाधनस्तदा स्वभावहेतुरेव सद्यवहारे साध्ये करणसाधनमनुपलंभे ततः सोपि न स्वभावकार्यहेतुभ्यां भिन्नः स्यात् । कर्मसाधनत्वेऽनुपलभ्यमानत्वस्य स्वभावहेतुत्वात् । करणसाधनत्वेऽनुपलंभनस्य कार्यस्वभावयोविधिसाधनत्वादनुपलंभस्य प्रतिषेधविषयत्वादन्यस्ताभ्यामनुपलंभ इत्यसंगतं इत्याह
___ बौद्ध कह रहे हैं उपलंभ शब्द यदि कर्ममें प्रत्ययकर साधा गया है, तब तो स्वभावहेतु ही होगा । जो देखा जा रहा है, वह वस्तुका स्वभाव है । अतः शिंशपासे वृक्षपनके व्यवहार समानभावके सद्भावका व्यवहारको साध्य करनेमें साध्यका स्वभाव उपलम्म हेतु है और करणसाधन