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तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके
तभी सम्यग्दर्शन उत्पन्न होगा, आगे पीछे नहीं । अन्य घट, पट, मिथ्यादर्शन आदि कार्योंसे सम्यग्दर्शनमें कार्यपनेकी कोई विशेषता नहीं है अर्थात् जैसे कि वे घट, पट आदिक नित्य, नित्यहेतुक, या अहेतुक नहीं हैं तैसे ही सम्यग्दर्शन भी ऐसा नहीं है । इस प्रकार नित्यपना, नित्यहेतुकपना और अहेतुकपना न माननेके कारण सम्यग्दर्शनको अनादिता, सर्वदा उत्पत्ति और नित्यसम्बन्धी नेका प्रसंग नहीं हो सकता है ।
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ननु च मिथ्यदर्शनस्य नित्यत्वाभावेऽपि नानादित्वव्यवच्छेदो दृष्ट इति चेन, तस्यानादिकारणत्वात् । न च तत्कारणस्यानादित्वान्नित्यत्वप्रसक्तिः सन्तानापेक्षयानादित्ववचनात् पर्यायापेक्षया तस्यापि सादित्वात्, तस्यानाद्यनन्तत्वे वा सर्वदा मोक्षस्याभावापत्तेः ।
यहां आक्षेपपूर्वक शंका है कि जैसे मिथ्यादर्शनको नित्यपना न होते हुए भी अनादिपनेका निराकरण होना नहीं देखा गया है अर्थात् मिथ्यादर्शन अनादिसे चला आ रहा है और ः नित्य नहींहै । तैसे ही नित्यपना न होते हुए भी सम्यग्दर्शनकी अनादिताका खण्डन नहीं हो सकता है, फिर आपने कारिकामें सम्यग्दर्शनको नित्यपना न होनेके कारण अनादिता नहीं है, यह कैसे कहा है ? बताओ। हम तो कहते हैं कि नित्य न होते हुए भी मिथ्यादर्शनके समान सम्यग्दर्शनको भी अनादि कालसे आया हुआ मान लो । आचार्य समझाते हैं कि इस प्रकारका कहना तो ठीक नहीं है । क्योंकि व्यक्तिरूपसे मिथ्यादर्शन अनादिकालका नहीं है, किंतु उस मिथ्यादर्शनका कारण मिथ्यात्व कर्म अनादिकाल से प्रवाहित होकर चला आ रहा है । अतः मिथ्यादर्शनको अनादिपना कहना ठीक नहीं है। हां, वह मिथ्यादर्शन धाराप्रवाहरूपसे अनादिकारणवाला है । स्वयं अनादि नहीं । अतः हम मिथ्यादर्शन और सम्यग्दर्शन दोनोंको भी नित्यपना न होनेके कारण अनादिपनेका निराकरण कर सकते हैं। यदि कोई यों कहे कि जब उस मिथ्यादर्शनका कारण अनादिकालसे चला आ रहा है तब तो मिथ्यादर्शनको नित्यपना प्राप्त हो जावेगा अर्थात् मिथ्यादर्शन अनादिपनेके साथ साथ नित्य भी हो जावेगा, जो कि मिथ्यादर्शनका नित्यपना हम तुम दोनोंको इष्ट नहीं है सो यह प्रसंग देना ठीक नहीं है। क्योंकि संतान ( धाराप्रवाह ) की अपेक्षासे मिथ्यात्वकर्मको अनादिपना हमने कहा है । पर्यायकी अपेक्षासे तो उन कर्मोंको और कर्मोंसे जनित भावोंको भी हम सादि मानते हैं । जैसे कि भारतवर्ष में अनादिसे अनंतकालतक मनुष्य पाये जाते हैं यह कथन संतान प्रतिसंतान की अपेक्षासे है, किंतु एक विवक्षित मनुष्य तो कुछ वर्षोंसे अधिक जीवित नहीं रह सकता है, तैसे ही एक बारका उपार्जित किया हुआ मिथ्यात्वद्रव्य अधिकसे अधिक सत्तर कोटाकोटी सागरतक स्थित रहता है, फिर भी इन कर्मोंका प्रवाह ( सिलसिला ) अनादि कालसे चला आया है । अतः सिद्ध हुआ कि मिथ्यादर्शन नित्य नहीं है । इस कारण अनादि भी नहीं है। दूसरी बात यह है कि उस मिथ्यादर्शनको अनादिसे अनंतकालतक विद्यमान मानोगे तो सदा ही मोक्ष न होनेका आपादन हो जावेगा, यानी सर्वदा मिथ्यादर्शनके विद्यमान होनेपर मोक्ष नहीं हो सकती है। यहांतक सम्यग्दर्श