SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थ लोकवार्तिके नित्यं तदनन्तत्वाज्जीवद्रव्यवदिति चेत् न, केवलज्ञानादिभिर्व्यभिचारात् । तेषामपि पक्षीकरणे मोक्षस्य नित्यत्वप्रसक्तेः क संसारानुभवः १ । ५४ www फिर भी शंकाकार यदि वह सम्यग्दर्शन ( पक्ष ) नित्य है ( साध्य ) क्योंकि अनन्त काल तक विद्यमान रहता है | ( हेतु ) जैसे कि जीवद्रव्य ( अन्वयदृष्टान्त ), इस - अनुमानसे सम्यग्दर्शनको नित्य सिद्ध करेगा, सो तो ठीक नहीं हैं। क्योंकि केवलज्ञान, अनन्तसुख, सिद्धत्व, आदि स्वभावों करके व्यभिचार हो जावेगा । ये सब उत्पन्न हुए पीछे अनन्तकालतक आत्मामें विद्यमान रहते हैं। किन्तु अनादि कालसे आये हुए नहीं है । अतः नित्य नहीं माने गये हैं । यदि शंकाकार उन केवलज्ञान आदि क्षायिक भावोंको भी पक्षकोटि में करेंगे अर्थात् उनको भी नित्यपना सिध्द करनेका प्रयत्न करेंगे तो मोक्षको भी नित्यपनेका प्रसंग होजावेगा। जो अनादिसे अनन्तकालतक उन्हीं भावोंसे बना रहता है उसको नित्य कहते हैं, जब कि केवलज्ञान आदि भाव जीवके अनादि से अनन्तकाल तक रहेंगे तो ऐसी दशामें राग, द्वेष, अज्ञान, दुःखरूप संसारका अनुभव करना कहां रहा ? सभी अनादिकाल से मुक्त होचुके व बैठेंगे । न च मोक्षकारणस्य सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकस्यानित्यत्वेऽपि मोक्षस्यानित्यत्वमुपपद्यते, मोक्षस्यानन्तत्वेऽपि च सादित्वे सम्यक्त्वादीनामनन्तत्वेऽपि सादित्वं कथं न भवेत् १ ततो नोत्पद्यत इति क्रियाध्याहारविरोधः । मोक्षके कारण माने गये सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र इन तीनों पर्यायोंके तदात्मक स्वभावको अनित्यपना होते हुए भी मोक्षको अनित्यपना नहीं बनता है । अर्थात् मोक्ष अनंत तक रहेगी। क्योंकि आत्माका परद्रव्यसे सम्बन्ध करानेवाले मिथ्यादर्शन आदि हेतुओंका मूलसहित ध्वंस हो गया है । तथा मोक्षके अनंतकालतक विद्यमान रहते हुए भी मोक्षको सादिपना जैसे अविरुध्द है वैसे ही सम्यग्दर्शन आदिकोंको क्षायिक होनेके कारण अनंतकालतक ठहरते हुए भी सादिपना कैसे न होगा ? । भावार्थ – सादि होते हुए भी सम्यग्दर्शन और मोक्ष अनंतकालतक विद्यमान रहते हैं। अतः सम्यग्दर्शनको नित्य नहीं मानना चाहिए। किंतु वह अपने कारणोंसे उत्पन्न होता है। इस कारण " नोत्पद्यते इस क्रिया के अध्याहार करनेका विरोध है । सम्यग्दर्शन, चेतना और चारित्रगुण नित्य हैं । किंतु इनके सम्यक्त्व, केवलज्ञान, यथाख्यातचारित्र ये परिणाम अनित्य हैं । इनका सदृश परिणाम एकसा अनंतकालतक होता रहेगा, यों मोक्ष अवस्था या सिध्दपर्याय भी सादि अनन्त है । "" एतेनाहेतुकं सद्दर्शनमिति निरस्तम् । नित्यहेतुकं तदित्यप्ययुक्तं, मिथ्यादर्शनस्यास्वसद्भावप्रसङ्गात् तत्कारणस्य सद्दर्शनकारणे विरोधिनि सर्वदा सति सम्भवादनुपपत्तेः, येन च तन्नित्यं नापि नित्यहेतुकं नाहेतुकम् । 10
SR No.090496
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1951
Total Pages674
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy