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संवाचिन्तामणिः
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सकलं हि वस्तुसत्वादयोऽनुयुजानाः स्याद्वादात्मका एव विकल्पयंतु नयात्मका एवेति न प्रमाणनयेभ्यो भिद्यते । तत्मभेदास्तु प्रपंचतः सर्वे तत्त्वार्थाधिगमहेतवोऽनुवेदितव्याः।
वस्तुओंके सम्पूर्ण सत् , संख्या, आदिक धर्म अनुयोगको प्राप्त हो रहे स्याद्वाद ( श्रुतज्ञान ) स्वरूप ही समझो और एकदेशसे विवक्षित हुये सत्त्व आदिकोंको नयस्वरूप ही की विकल्पना करो। इस प्रकार वे सत् आदिक प्ररूपित किये गये उपाय तो प्रमाण और नयोंसे भिन्न नहीं हैं। उन प्रमाण और नयोंके सम्पूर्ण भेद प्रभेद तो विस्तारसे कहे गये हुये तत्त्वार्थोकी अधिगतिके कारण आम्नाय अनुसार समझ लेने चाहिये । नाम आदि, निर्देश आदि, तथा सत्संख्या एवं अन्य भी नैगम आदि ये सब प्रमाणनयोंका ही कुटुम्ब है।
सत्त्वेन निश्चिता भावा गम्यते संख्यया बुधैः । संख्यातः क्षेत्रतो ज्ञेयाः स्पर्शनेन च कालतः ॥ ६१ ॥ तथांतराच्च भावेभ्यो ज्ञायतेल्पबहुत्वतः । क्रमादिति तथैतेषां निर्देशो व्यवतिष्ठते ॥ २ ॥ प्रश्नक्रमवशाद्वापि विनेयानामसंशयम् । नोपालंभमवाप्नोति प्रत्युत्तरवचःक्रमः ॥ ६३ ॥
प्रथम ही विद्यमान सत्पनेसे निर्णीत किये गये भाव ही पीछे विद्वानों करके संख्या द्वारा निश्चित किये जाते हैं । संख्यासे अनन्तर क्षेत्रसे समझे जाते हैं और स्पर्शन करके तथा कालसे भी ठीक तौरपर जान लिये जाते हैं तथा अन्तर और भावोंसे भी जाने जाते हैं । अल्प बहुत्वसे भी पदार्थोका तलस्पर्शी ज्ञान हो जाता है । इस कारण इन पदार्थोका क्रमसे निर्देश करना तिस ढंगसे व्यवस्थित हो रहा है अर्थात्-इस उक्त क्रमसे पदार्थीको समझनेवाला ज्ञाता ठोस निर्णयपर शीघ्र ही पहुंच जायेगा अथवा विनीत शिष्योंके प्रश्नोंके क्रमवशसे भी प्रत्युत्तरोंके वचनोंका क्रम है। प्रश्नोंके अनुसार उत्तर देनेसे ही श्रोताको संशयरहित ज्ञप्ति हो जाती है। अतः सूत्रमें कहे गये सत् आदिक अनुयोगोंका क्रम किसी भी उलाहनेको प्राप्त नहीं होता है।
ततो युक्त एव सूत्रे सदादिपाठक्रमः शद्धार्थन्यायाविरोधात् ।।
तिस. कारण सूत्रमें शद्वसम्बन्धी और अर्थसम्बन्धी न्यायके अविरोध हो जानेसे सत्संख्या आदिके पढनेका क्रम युक्त ही है अर्थात्-शब्द शास्त्रकी दृष्टि से शिष्योंकी- व्युत्पत्तिको बढानेका लक्ष्य रखकर उमास्वामी महाराजने सूत्रमें सत्संख्या आदिका क्रम ठीक रखा है अथवा अर्थ समझने. वाले शिष्यों के प्रश्नों अनुसार उत्तर देनेके लिये सूत्र पढा गया है। प्रश्नोंका क्रम भी सुलभतासे वस्तुके अन्तस्तलपर पहुंचनेके लिये अच्छे ही 'ढंगसे किया गया है। गुरुजीको शिष्य भी अच्छो मिला है।