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तत्वार्यचिन्तामणिः
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कथंचित् भेद होनेसे संख्यावान् द्रव्योंकी संख्या है, यह भेदनिर्देश बन जाता है और कथंचित अभेद होनेसे संख्यावान् द्रव्योंकी विशेष परिणति संख्या होजाती है । यह स्याद्वादसिद्धान्त स्थित रहा।
गणनामात्ररूपेयं संख्योक्तातः कथंचन । भिन्ना विधानतो भेदगणनालक्षणादिह ॥ ३७॥
सत्संख्या आदि सूत्रमें यह केवल गिनती करना रूप संख्या कही गयी है । इस कारण भेदोंकी गिनती करना स्वरूप विधानसे यहां संख्या किसी अपेक्षा भिन्न है, सर्वथा भेद तो जड और चेतनमें भी नहीं है। सत्त्व, द्रव्यत्वरूपसे जड और चेतनका अभेद है।
निर्देशादिसूत्रे विधानस्य वचनादिह संख्योपदेशो ने युक्तः पुनरुक्तत्वाद्विधानस्य संख्या रूपत्वादिति न चोद्यं, तस्य ततः कथंचिद्भेदप्रसिद्धः। संख्या हि गणनामात्ररूपा व्यापिनी, विधानं तु प्रकारगणनारूपं ततः प्रतिविशिष्टमेवेति युक्तः संख्योपदेशस्तत्त्वार्थाधिगमे हेतुः।
निर्देश, स्वामित्व, आदि सातवें सूत्रमें भेदगणना रूप विधानका कथन होचुका है, अतः इस सूत्रमें संख्याका उपदेश करना पुनरुक्त दोष होनेके कारण युक्त नहीं है। क्योंकि विधान तो संख्या स्वरूप कहा ही जाचुका है। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार कुतर्क नहीं करना। क्योंकि उस विधानका तिस संख्यासे कथंचित् भेद होना प्रसिद्ध होरहा है । एक या दोको आदि लेकर अनन्तानन्त संख्यापर्यन्त केवल गिनती करना रूप संख्याव्यापर ही है और विधान तो प्रकारोंकी गिनतस्विरूप होता हुआ उस संख्यासे व्याप्य होरहा विशिष्ट ही है । भावार्थ-संख्या सर्वत्र वर्तती हुई व्यापक है और कतिपय नियत हुये भेदोंकी गिनती करना रूप विधान तो कुछ विशिष्ट पदार्थोंमें रहता हुआ व्याप्य है । इस कारण विधानसे अतिरिक्त संख्याका उपदेश करना इस सूत्रमें युक्त होता हुआ तत्त्वार्थोके विशदरूपसे अधिगम करानेमें निमित्त कारण होजाता है । यहांतक संख्याका व्याख्यान कर दिया गया । अब क्षेत्रका प्ररूपण करते हैं ।
निवासलक्षणं क्षेत्र पदार्थानां न वास्तवम् । खस्वभावव्यवस्थानादित्येके तदपेशलम् ॥ ३८॥ राज्ञः सति कुरुक्षेत्रे तन्निवासस्य दर्शनात् । तस्मिन्नसति चादृष्टे वास्तवस्याप्रबाधनात् ॥ ३९ ॥
पदार्थोका निवासस्थानस्वरूप क्षेत्र वास्तविक नहीं है । क्योंकि सम्पूर्ण पदार्थ अपने अपने स्वमावोंमें व्यवस्थित हो रहे हैं । इस प्रकार कोई एक बौद्ध विद्वान् कह रहे है । सो वह कहना मी चातुर्यसे रहित है। क्योंकि वास्तविक कुरुक्षेत्रके होते सन्ते राजाका वहां निवास करना देखा जाता है. और उस कुरुक्षेत्रके न होनेपर निवास करना नहीं देखा जाता है। इस कारण क्षेत्रके वास्तविक
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