________________
तत्वार्थचिन्तामाणिः
सर्वत्र एकरूपसे व्यापक हो रहा भी समवाय अपने किसी किसी विवक्षित एक अंश करके किसी किसी वस्तुमें नियम करनेका निमित्त हो जाता है, यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि यों तो समवायको अवयव सहितपनेका प्रसंग होगा और इस ढंगसे वैशेषिकोंको अपने सिद्धान्तसे विरोध करना लागू होगा । वैशेषिकोंने अवयवोंसे जन्यपन या अवयवोंके साथ वर्तनारूप सावयवपना समवायमें इष्ट नहीं किया है । फिर वैशेषिक यों कहैं कि अवयवरूप अंशोंसे रहित होता हुआ ही समवायसम्बन्ध तिस प्रकारकी शक्तिविशेषसे तैसे संख्यावान् आदि व्यवहारोंके नियम करनेका हेतु बन जाता है । ग्रन्थकार कहते हैं कि उनका यह कहना तो युक्तिरहित है। क्योंकि इस वक्ष्यमाण अनुमानसे वैशेषिकोंके इस कथनका विरोध है । सो सुनिये ।
समवायो न संख्यादि तद्वतां घटने प्रभुः । निरंशत्वायथैवैकः परमाणुः सकृत्तव ॥ ३१ ॥
संख्या, क्रिया, सामान्य, आदिक पदार्थ और उससे सहित किये जानेवाले द्रव्य आदि पदार्थोका सम्बन्ध करानेमें एक समवायसम्बन्ध तो समर्थ नहीं है । क्योंकि वह समवाय अंशरहित है। जैसे कि तुम वैशेषिकोंके यहां मानी गयी एक परमाणु अंशरहित होनेके कारण संख्या और संख्यावान् अथवा घट पट, आदिकोंके परस्पर सम्मेलन करानेमें समर्थ नहीं हैं।
न हि निरंशः सकृदेकः परमाणुः संख्यादितद्वतां परस्परमिष्टव्यपदेशनघटने समर्थः सिद्धः तद्वत्समवायोपि विशेषाभावात् ।।
___अन्य अनेक अंशोंसे रहित एक निरवयव परमाणु एक ही समय संख्या आदि और तद्विशिष्ट • माने गये पदार्थोकी परस्पर घटना करानेमें समर्थ हुआ सिद्ध नहीं माना है। आकाशमें एकत्व संख्या है । एक पुरुषके हाथोमें द्वित्व संख्या है। अंगुलियोंमें पंचत्व संख्या है। इस प्रकार अभीष्ट व्यवहारोंके घटित करने में परमाणु समर्थ नहीं है। उसीके समान समवाय भी नियत संख्यासे नियत पदार्थको विशिष्ट करने के व्यवहार करानेमें समर्थ नहीं है। एक निरंशपरमाणु और समवायमें सम्बन्ध करने और व्यवहार करनेकी सामर्थ्य अपेक्षासे कोई अन्तर नहीं है ।
शक्तिविशेषयोगात् समवायस्तत्र परिवृढ इति चेत्, परमाणुस्तथास्तु । सर्वगतत्वात्स तत्र समर्थ इति चेन्न, निरंशस्य तदयोगात् परमाणुवत् ।
एक भी समवाय पदार्थविशेष शक्तियोंके सम्बन्धसे इस नियत पदार्थोंकी घटनाके व्यवहारमें मळे प्रकार दृढ है । ऐसा वैशेषिकोंके कहनेपर तो हम जैन कह देंगे कि यों तो एक अंशरहित परमाणु भी तिस प्रकार गुणगुणी आदिके परस्पर सम्बन्ध करानेमें दृढ हो जाओ। उसपर यदि वैशेषिक यों कहें कि वह समवाय तो सर्वत्र व्यापक होनेके कारण उस सम्बन्धको करानेमें समर्थ है । परमाणु तो व्यापक नहीं है। अतः सर्वत्र सम्बन्धोंका नियामक नहीं बन सकता है । आचार्य कहते हैं कि