________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
४९
न च प्रधानधर्मत्वं श्रद्धानस्य चिदात्मनः। - चैतन्यस्यैव संसिध्येदन्यथा स्याद्विपर्ययः॥ २० ॥
चैतन्य आत्मक ( स्वरूप ) श्रद्धानको प्रकृतिका परिणामपना सिद्ध नहीं होता है । किंतु चेतनस्वरूप आत्माका ही परिणाम श्रद्धान है, यह बात भले प्रकार सिद्ध हो जाती है । स्वसंवेदनप्रत्यक्षसे श्रद्धान करनेको चेतनपना सिद्ध हो रहा है । यदि ऐसा न मानकर दूसरे प्रकारोंसें प्रमाणविरुद्ध बातोंको मानोगे तो विपर्यय भी क्यों न हो जावे । अर्थात् प्रकृतिका परिणाम चैतन्य हो जावो और आत्माका परिणाम ज्ञान हो जावो । अतः “ विनिगमनाविरह " हो जानेके कारण आपका मन्तव्य सिद्ध नहीं होगा, किंतु श्रद्धानको चेतन आत्माका ही स्वभाव कहना प्रमाण-सिद्ध हो चुका है। आत्माका चैतन्य गुण प्रगट है, साकार है, वह संपूर्ण गुणोंमें अन्वितरूपसे रहता है। अतः श्रद्धान गुणपर भी चैतन्यका लेप ( चाशनी ) चढा हुआ है । आत्माके अभिन्न संपूर्ण गुणोंका एक दूसरेमें प्रतिफलन हो जाता है अर्थात् पररपरमें वाइंना बट जाना है । अस्तित्व गुणसे द्रव्यत्व गुणका सद्भाव है और द्रव्यत्वगुण अनुसार अस्तित्व गुणका भी प्रतिक्षण द्रवण होता रहता है।
चिदात्मकत्वमसिद्धं श्रद्धानस्येति चेन्न, तस्य स्वसंवेदनतः प्रसिद्धर्ज्ञानवत्, साधितं ज्ञानादीनां चेतनात्मकत्वं पुरस्तात् ।
श्रद्धानको चैतन्य स्वरूपपना असिद्ध है, इस प्रकार कापिलोंका कहना तो ठीक नहीं है । क्यों कि उस श्रद्धानको स्वसंवेदन प्रत्यक्षसे चेतनात्मकपनेकी प्रसिध्दि हो रही है, जैसे कि ज्ञान चेतनस्वरूप है । आत्माके ज्ञान, श्रद्धन, दर्शन, आदिका चेतनस्वरूपपना हम पहिले प्रकरणमें प्रसिध्द कर चुके हैं । आत्माके संपूर्ण गुणोंमें चैतन्यसे अन्वितपना पाया जाता है । अखण्ड आत्माके गुणोंका परस्परमें तदात्मक एक रस हो रहा है ।
न श्रद्धत्ते प्रधानं वा जडत्वात्कलशादिवत् । प्रतत्यिाश्रयणे त्वात्मा श्रद्धातास्तु निराकुलम् ॥ २१ ॥
अथवा सांख्य मतका निराकरण करनेके लिए आचार्य महाराज अनुमान करते हैं कि सत्वरजस्तमोगुणरूप प्रधान तो [ पक्ष ] श्रद्धान नहीं करता है [ साध्यदल ] क्योंकि वह स्वभाव से जड है [ हेतु ] जैसे कि घट, पट आदिक अर्थात् घट भीत आदिक पदार्थ अज्ञानस्वरूप जड होनेके कारण जीव, अजीव आदिक तत्त्वोंका श्रध्दान नहीं करते हैं [अन्वय दृष्टान्त ] सांख्योंका माना गया प्रधान भी अचेतन होनेके कारण जड है [ उपनय ] अतः वह पदार्थोका श्रद्धान नहीं कर सकता है ( निगमन ) यदि लोकप्रसिध्द प्रतीतियोंका अवलम्ब लोगे, तब तो जीवात्मा ही