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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः - है । और कतिपय अर्थक्रियायें तो कारण अर्थके अनेक क्षणतक ठहरनेपर ही हो पाती हैं। भोगभूमिओंके मनुष्योंमें नवीन सम्यक्त्वको ग्रहण करनेकी योग्यता उनंचास ४९ दिनमें होती है। कर्मभूमिके मनुष्यको आठ वर्ष पीछे ही संयम धारणकी योग्यता होती है। बांस, केला, अश्वतरी (जिसका पेट फाडकर बच्चा उत्पन्न होता है ऐसी खिच्चरी) बूढेपनमें फलते हैं । " अली बली कर्कशवेणुरम्भा विनाशकाले फलमुद्वहन्ति ऐसा शुद्ध अशुद्ध खण्डपथ स्मृत रह गया है । ५७९ ननु प्रथमे क्षणे यथार्थानां क्षणद्वयस्थास्नुता तथा द्वितीयेऽपीति न कदाचिद्विनाशः स्यादन्यथा सैव क्षणस्थितिः प्रतिक्षणं स्वभावभेदात्ततो न कालान्तरस्थायी भावो हेतोः समुद्भवन् प्रतीयतेऽन्यत्र विभ्रमादिति न मंतव्यं, क्षणद्वक्षयस्थायिनां तृतीयादिकक्षणस्थायित्वविरोधात् । प्रथमक्षणे द्वितीयक्षणापेक्षायामिव द्वितीयक्षणे प्रथमक्षणापेक्षायां क्षणद्वयस्थास्नुत्वाविशेषात् प्रतिक्षणं स्वभावभेदानुपपत्तेः कालान्तरस्थायित्वसिद्धेः । बौद्ध अवधारण करते हैं कि आप जैन अनेक क्षण तो क्या पदार्थोंका दो क्षणतक भी ठहरना सिद्ध नहीं कर सकेंगे । सूक्ष्मतासे विचार करनेपर एकक्षणतक ही पदार्थोंका ठहरना प्रमाण सिद्ध होगा। देखिये, जैसे पहिले क्षणमें पदार्थोंका दो क्षणतक ठहरना रूप स्वभाव है, तिसी प्रकार दूसरे क्षणमें भी वही दो क्षणतक ठहरना स्वभाव स्थित रहेगा एवं तीसरे समय में भी तीसरे और चौथे समयों में ठहरनारूप दो क्षणस्थायित्व स्वभाव रहेगा। इसी प्रकार चौथे, पांचवे, इन दो समयोंमें ठहरना स्वभाव विद्यमान है। इस ढंगसे तो पदार्थका कभी भी विनाश न हो सकेगा, जैसे कि आज मूल्यसे और कल ऋणसे देनेवाले व्यापारीको कभी उधार देनेका अवसर नहीं प्राप्त होता 1 है । अन्यथा यानी दूसरे, तीसरे, आदि क्षणोंमें दो समय तक ठहरनारूप स्वभाव न माना जायगा तब तो वही एक क्षणतक ठहरना सिद्ध हुआ । क्योंकि प्रत्येक क्षणमें पदार्थका स्वभाव भिन्न भिन्न है । तिस कारण हेतुओं से अधिक समयतक ठहरनेवाला उत्पन्न हो रहा पदार्थ प्रतीत होता है, यह कहना ठीक नहीं है । भ्रान्तज्ञानके अतिरिक्त यह कोई समीचीन प्रतीति नहीं है। अब आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार तो बौद्धोंको नहीं मानना चाहिये। क्योंकि दो क्षणतक स्थित रहना स्वभाववाले पदार्थोंका तीसरे, चौथे, आदि क्षणोंमें स्थायीपनका विरोध है । पहिले क्षणमें जैसे दूसरे क्षणकी अपेक्षा होते सन्ते दो क्षणस्थापीपन है, वैसे ही दूसरे क्षणमें पहिले क्षणकी अपेक्षा होते सन्ते दो क्षणतक ठहरनापन स्वभाव विद्यमान है, कोई अन्तर नहीं है। बस, आगे नहीं चलना चाहिये । ऐसे क्षण या दिन भर आदितक ठहरने वालोंमें लगा लेना । अतः प्रत्येक क्षण में स्वभावोंका सर्वथा भेद मानना नहीं बनता है । इस कारण पदार्थोंका अनेक अन्य समयों में ठहरनापन शील सिद्ध हो जाता है । ननु च प्रथमक्षणे द्वितीयक्षणापेक्षं क्षणद्वयस्थायित्वमन्यदेव, द्वितीयक्षणे प्रथमक्षणापेक्षात तोस्त्येव प्रतिक्षणं स्वभावभेदोऽतः क्षणमात्रस्थितिः सिध्येत्सर्वार्थानामिति वदंतं प्रत्याह ।
SR No.090496
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1951
Total Pages674
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
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