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तत्वार्थचिन्तामणिः
भावे वान्यस्य विश्लिष्टौ श्लिष्टौ स्यातां कथं च तौ ॥” इति । तदेतदसदृषणम् । स्वाभिमतेऽप्यकार्यकारणभावे समानत्वात् । तथाहि
दूसरे उपाय स्वामित्वका निरूपण करते समय सामान्यरूपसे सम्बन्ध पदार्थमें पहिले दूषण दिया था। अब साध्यसाधनके प्रकरण अनुसार बौद्ध विशेषसम्बन्धमें भी दूषण देते हैं कि कार्यकारणभाव नामका सम्बंध भी समीचीन नहीं है। क्योंकि सम्बन्ध दोमें रहनेवाला होता है और कार्यकारणोंका एक कालमें साथ न रहनेके कारण द्विष्ठ सम्बन्धका असम्भव है। कारण समयमें कार्य नहीं है और कार्यकालमें कारण नहीं है। कार्यसे कारण पूर्वसमयवर्ती होता है। बैलके सीधे और डेरे सींगके समान समानकालवाले पदार्थोंमें कार्यकारण भाव नहीं होता है। तिस कारण साथ रहनेवाले दो सम्बन्धियोंमें रहनेवाला सम्बन्ध भला क्रमवर्ती क्षणिक कार्यकारणोंमें कैसे प्रसिद्ध होवेगा? अर्थात् नहीं। तथा दोमें नहीं रहनेवाले पदार्थ तो सम्बन्धपना असिद्ध ही है । अतः दोमें नहीं रहनेवाले कार्यकारणमें सम्बन्धपना कैसे सिद्ध हो सकता है ? (१) यहां कोई सम्बन्धवादी यदि यों कहे कि कारण अथवा कार्यमें वह सम्बन्ध क्रमसे वर्तेगा, बौद्ध कहते हैं कि यह तो ठीक नहीं। क्योंक क्रमसे भी सम्बन्ध नामका पदार्थ एक कारण अथवा कार्यमें वर्तता हुआ कार्य और कारणोंमेंसे एककी नहीं अपेक्षा रखकर एकही में वर्तनेवाला होकर तो सम्बन्ध नहीं बन सकता है। क्योंकि कार्य और कारणमेंसे एकके न होते हुए भी वह सम्बन्ध रह जाता माना गया है और केवल एकमें रहनेवाला तो सम्बन्ध होता नहीं है । (२) यदि फिर भी कोई सम्बन्धवादी यों कहे कि उन कार्य और कारोंमेंसे एक कार्य अथवा कारणकी अपेक्षा करके बचे हुए दूसरे कार्य अथवा कारणमें वह सम्बन्ध क्रमसे वर्त्तता है। अतः अपेक्षा सहित होनेसे दोमें रहनेवाला ही माना जायगा । तब तो हम बौद्धोंका यह कहना है कि जिसकी अपेक्षा की जाती है, वह उपकारी होना चाहिये । क्योंकि उपकारीकी अपेक्षा होती है । अन्यकी कार्य अथवा कारणोंको अपेक्षा नहीं होती है । जब कि कार्यकालमें कारण और कारणकालमें कार्यनामका भाव अविद्यमान है, तब वे किस प्रकार क्या उपकार कर सकेंगे? खरविषाणके समान असत् पदार्थ तो यह इसका कार्य है और यह इसका कारण है इत्यादि उपकारोंको करनेमें समर्थ नहीं है । (३) यदि एक सम्बन्धरूप अर्थसे बन्ध जानेके कारण उन कार्यपन और कारणपनसे मान लिये गये क्रमवर्ती पदार्थोंमें कार्यकारणभाव माना जायगा, तब तो द्वित्व संख्या या बडे छोटे और दूरवर्ती निकटवर्ती पदार्थोंमें होनेवाले काल, देश, सम्बन्धी परत्व या अपरत्व अथवा विभाग, पृथक्त्व, आदिके सम्बन्धसे वह कार्यकारणभाव बैलके सीधे डेरे सींगोंमें भी प्राप्त हो जावेगा। दोनों सींगोंमें द्वित्व, विभाग, आदि विद्यमान हैं ( ४ ) इसपर कोई सम्बन्धवादी यदि यों कहे कि चाहे किसी भी द्वित्वसंख्या, परत्व, आदिके सम्बन्धसे हम कार्यकारणता नहीं मानते हैं, किन्तु सम्बन्ध नामक पदार्थसे जुड जानेपर कार्यकारणता मानते हैं । बौद्ध कहते हैं कि यह तो ठीक नहीं । क्योंकि दोमें रहनेवाला ही कोई पदार्थ सम्बन्ध होगा।
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