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तत्वार्थचिन्तामणिः
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देवदत्त श्वेत गायको दण्डसे घेर लाओ आदि । यह बौद्धोंका कथन नहीं घटित होता है । जिससे कि उनका यह सिद्धान्त शोभा पाता कि उस कल्पनाका ही अनुरोध करनेवाले ज्ञाताओं करके भावोंकी भेदप्रतीति करानेके लिये क्रियावाची शब्द और कारकवाची शब्दोंकी जोडकला करली जाती है । क्षणिक होनेके कारण क्रियाकालमें कारक नहीं । अतः उनका सम्बन्ध नहीं है तथा वस्तुतः वाच्यवाचक भाव भी नहीं है । इस प्रकार यह बौद्धोंका कथन विद्वानोंमें शोभा नहीं पाता है । क्योंकि क्रिया, कारक, ज्ञापक, आदि सम्बन्धियों और उनके सम्बन्ध वास्तविक स्वरूपकी प्रतिपत्ति करनेके लिये उनके करना सिद्ध हो रहा है तथा सब स्थानोंपर अन्यापोह ही शद्वका वाच्यअर्थ है । इसका निराकरण कर दिया गया है । तिस कारण कोई एक विवक्षित पदार्थ किसी एकका स्वस्वामि सम्बन्ध हो जानेसे स्वामी सिद्ध हो ही जाता है । इस प्रकार पदार्थोंका निर्देश्यपनेके समान स्वामीपना भी जानने योग्य है । यह सिद्ध कर दिया गया ही है । यहांतक स्वामित्वका विचार किया। अब तीसरे उपाय साधनका विचार चलाते हैं-
कहनेवाले शब्दों का प्रयोग
न किंचित्केनचिद्वस्तु साध्यते सन्न चाप्यसत् । ततो न साधनं नामेत्यन्ये तेऽप्यसदुक्तयः ॥ १३ ॥
कार्यकारण भावको न माननेवाले बौद्ध कह रहे हैं कि कोई भी बन चुकी सद्भूत वस्तु किसी एक साधन करके नहीं साधी जाती है और सर्वथा नहीं बनी हुयी असत् वस्तु भी किसी कारण से नहीं साधी जा सकती है । तिस कारण संसार में कोई भी साधन पदार्थ नाममात्रको भी नहीं है । इस प्रकार कोई दूसरे वादी कह रहे हैं । अब आचार्य कहते हैं कि वे भी प्रशंसनीय कथन करनेवाले नहीं हैं । प्रत्यक्षसे ही बाल गोपालों तकको कार्यकारणभाव प्रतीत हो रहा है। दण्ड, चक्र, मिट्टी से घडा बनता है, सूत, तुरी, वेमासे कपडा बनता है ।
साधनं हि कारणं तच्च न सदेव कार्ये साधयति स्वरूपवत्, नाप्यसत् खरविषाणवत् । प्रागसत्साधयतीति न वा युक्तं, सदेव साधयतीति पक्षानतिक्रमात् । न घुत्पत्तेः प्रागसत् प्रागेव कारणं निष्पादयति, तस्यासत एव निष्पादनप्रसक्तेः । उत्पत्तिकाले सदेव करोतीति कथनेन कथं न सत्पक्षः ? कथञ्चिदसत् करोतीत्यपि न व्यवतिष्ठते, येन रूपेण सत्तेन करणायोगादन्यथा स्वात्मनोऽपि करणप्रसंगात् । येन चात्मना तदसत्तेनापि न कार्यतामियर्ति शशविषाणवदित्युभयदोषावकाशात् सदसद्रूपं कार्ये नाऽनाकुलं, न च कथञ्चिदपि कार्यमसाधयत् किञ्चित्साधनं नाम कार्यकरणभावस्य तत्त्वतोसम्भवाच्च । तदुक्तम् — अन्यवादी ही विकल्पोंको उठाकर कार्यकारणभावमें दूषण दिखा रहे हैं। जिससे कि साधनका अर्थ कारण है और वह कारण सद्रूप ही कार्यको नहीं बनाता है । जैसे कि कारण
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