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तत्त्वार्थचिन्तामाणः
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विना नहीं घटित होता है । इस कारण वह कथञ्चित् तदात्मक हो जाना स्वरूप एकत्व परिणाम भी समझ लेना ही चाहिये और वह एकत्व परिणतिसे युक्त वस्तु ही तो एकद्रव्य है। यह सिद्ध हुआ। अपने गुण और अपनी पर्यायोंका समुदाय स्कन्ध होता है, ऐसा अन्यत्र ग्रन्थोंमें वचन है। वही अन्वयरूपसे रहनेवाला एकद्रव्य है।
तथा सति रूपरसयोरेकार्थात्मकयोरेकद्रव्यप्रत्यासत्तिरेव लिंगलिंगिव्यवहारहेतुः कार्यकारणभावस्यापि नियतस्य तदभावेनुपपत्तेः सन्तानान्तरवत् । न हि कचित् पूर्वे रसादिपर्यायाः पररसादिपर्यायाणामुपादानं नान्यत्र द्रव्ये वर्तमाना इति नियमस्तेषामेकद्रव्यतादात्म्यविरहे कथंचिदुपपन्नः।
तैसा होनेपर पहिले कहे गये एकअर्थस्वरूप रस और रूपका एकद्रव्य नामका ही सम्बन्ध है और वह एकद्रव्य प्रत्यासत्ति ही रूप रसके साध्य साधन व्यवहारका कारण है। आप बौद्धोंका माना गया अर्थक्रियामें नियत रहनारूप कार्यकारणभाव भी एकद्रव्य प्रत्यासत्ति नामक सम्बन्धके विना नहीं बन सकता है। जैसे कि देवदत्त, जिनदत्त, आदि दूसरे सन्तानोंके अनुभव, स्मरण, ज्ञान, सुख, आदिका परस्परमें कार्यकारणभाव नहीं बनता है, किसी एकद्रव्यमें पूर्व समयके रस आदि पर्याय उत्तरवर्ती समयमें होनेवाले रस आदि पर्यायोंके उपादान कारण हो जाते हैं, किन्तु दूसरे द्रव्योमें वर्त्त रहे पूर्वसमयवर्ती रस आदि पर्याय इस प्रकृत द्रव्यमें होनेवाले रसादिकके उपादान कारण नहीं हैं, इस प्रकार नियम करना उन रूप आदिकोंके एकद्रव्य तादात्म्यके विना कैसे भी नहीं बन पाता है । नहिका अन्वय उपपन्नःके साथ करना चाहिये । ____ एकमुपादानमेका सामग्रीति द्वितीयोपि पक्षः सौगतानामसंभाव्य एव, नानाकार्यस्यैकोपादानत्वविरोधात् । यदि पुनरेकं द्रव्यमनेककार्योपादानं भवेत्तदा सैवैकद्रव्यप्रत्यासत्तिरायाता रसरूपयोः।
प्रथम सहकारी और उपादान दो पक्ष उठाये थे, उनमें पहिले सहकारी कारणका विचार हो गया । अब दूसरे विकल्प उपादान कारणका विचार चलाते हैं कि अनेक कार्योंका एक उपादान कारण होना एक सामग्री है । इस प्रकार बौद्धोंका दूसरा पक्ष लेना भी सम्भावना करने योग्य नहीं है। क्योंकि अनेक कार्योके एक उपादन होनेका विरोध है। "यावान्ति कार्याणि तावन्ति कारणानि" जितने कार्य होते हैं उतने ही कारण होते हैं । स्वभावभेद या शक्तिभेदसे धर्मी कारण भी भिन्न माना जाता है । यदि फिर आप बौद्धोंके यहां अनेक कार्योंका उपादान कारण एकद्रव्य हो जाय, तब तो रूप और रसकी वही एकद्रव्य-प्रत्यासत्ति आगयी । रूप-स्कन्ध नामक सामग्रीसे रूप और रसकी उत्पत्ति मानना एकद्रव्य-प्रत्यासत्तिसे सम्भव है । इस प्रकार अनुभव और स्मरणकी अथवा रूप, रस, आदिकी प्रत्यासत्ति हुयी । इस सम्बन्धको पुष्ट किया । अब दूसरे सम्बन्धका वर्णन करते हैं। .