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तत्त्वार्याचन्तामणिः
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अब सातवें सूत्रके उत्थानके लिये अवतरण करते हैं
तदेवं संक्षेपतोऽधिगमोपायं प्रतिपाद्य मध्यममस्थानतस्तमुपदर्शयितुमनाः सूत्रकारः माह:
तिस कारण इस प्रकार संक्षेपसे अधिगम करनेके उपायका प्रतिपादन कर मध्यम गतिसे समझनेवाले शिष्योंके प्रति उस अधिगमके उपायको दिखलानेके लिये मानसिक विचारोंको रखनेवाले सूत्रकार श्रीउमाखामी महाराज अग्रिम सूत्रको प्रकृष्टपनसे कहते हैंनिर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः ॥ ७॥
निर्देश ( अर्थस्वरूपका कथन ) स्वामित्व ( अधिपतिपना ) साधन ( कारण) अधिकरण ( आधार ) स्थिति ( कालकृतमर्यादा ) और विधान (प्रकार ) इनसे जीव आदि तत्त्वोंका तथा सम्यग्दर्शन आदिकोंका अधिगम होता है । अधिगमका साक्षात् कारण तो विषयी ज्ञान है, किन्तु उसके अव्यहित पूर्वमें रहनेवाले विषय यदि सहायक हो सकते हैं तो वे निर्देश आदिक हैं । निर्देश आदि स्वरूप अर्थ, शब्द, और ज्ञान ये तीनों अधिगमके प्रयोजक हैं। .: निर्देशादीनामितरेतरयोगे द्वन्दः करणनिर्देशश्च बहुवचनान्तः प्रत्येयस्तथा सति विधानात् । स्थितिशदस्य स्वंतत्वादल्पाक्षरत्वाच्च पूर्वनिपातोऽस्त्विति न चोद्यं, बहुष्वनियमात् । सर्वस्य निर्देशपूर्वकत्वात् स्वामित्वादिनिरूपणस्य पूर्व निर्देशग्रहणमर्थान्यायान विरुध्यते स्वामित्वादीनां तु प्रश्नवशात् क्रमः।
निर्देश, आदि छह पदोंका परस्परमें योग करनेपर द्वन्द समास करलेना और समासान्त पदको वहुवचनान्त तृतीया विभक्तिसे करण निर्देशकर समझ लेना चाहिये । क्योंकि तिस प्रकार " निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणास्थितिविधानैः " इस विग्रहसे तसि नामके हृत् प्रत्ययका विधान किया गया है। यहां किसीका प्रश्न है कि इकारान्त और उकारान्त शद्वोंकी सुसंज्ञा है। द्वन्द्व समासमें स्वन्त पद और अल्प अक्षरवाले पदोंका पहिले प्रयोग हो जाता है। इस कारण प्रकृत सूत्रमें स्वन्त और अल्पअक्षर होनेके कारण स्थिति शब्दका पूर्वनिपात हो जाओ । अब आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार कुतर्क नहीं उठाना चाहिये । क्योंकि बहुत पदोंमें वे नियम लागू नहीं होते हैं। अर्थात् दो पदोंका समास होनेपर पूर्व निपातको विधान करनेवाले सूत्र लगते हैं । किन्तु तीन, चार, छह, आदि बहुतसे पदोंका द्वन्द्वसमास करनेपर पूर्व निपातका कोई नियम लागू नहीं होता है। अन्य सब ही सामित्व, साधन, आदिका निरूपण करना निर्देश पूर्वक ही होता है। अतः पर्यसम्बन्धी न्यायसे निर्देशका पहिले ग्रहण करना विरुद्ध नहीं है, यानी शब्दशास्त्रकी नीतिको गौण कर अर्थ समझनेकी नीतिसे पहिले निर्देशका ग्रहण करना आवश्यक है। हो ! स्वामिफ्न 64