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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
और संख्यावाले संख्येयका तादात्म्य सम्बन्ध बन गया तो संख्येयके समान कथंचित् उससे अमिन संख्याको अंश सहितपना होनेके कारण अनेक स्वभावसहितपना सिद्ध हो जाता है । इस प्रकार स्वभावको अनेकपना होते हुए भी उस स्वभाववाले और कथंचित् उस स्वभावसे अभिन्न द्रव्यको एकपना होनेके कारण अवक्तव्यत्व धर्मको एक अंशपना सिद्ध हो जाता है और अंशके अनेकपना होते हुए भी अस्त्यवक्तव्य, नास्त्यवक्तव्यपन, आदि धर्मोको एक धर्मपना सिद्ध हो जाता है । कोई विरोध नहीं है। भावार्थ द्रव्य और अंश या स्वभावोंका अभेद होनेके कारण एक द्रव्यका एकपना अंशोंमें चला जाता है और अंशोंका अनेकपना एक द्रव्यमें आ जाता है । अतः यदि द्रव्य सांश अनेक स्वभाववान् है तो उसके अंश भी सांश और अनेक स्वभाववाले हो जाते हैं । वस्तु स्वभावमें हम क्या हस्तक्षेप कर सकते हैं ! तिस प्रकार द्वादशाङ्ग श्रुतज्ञानमें प्रतिभास रहा है और उसका कोई बाधक भी नहीं है।
त एतेऽस्तित्वादयो धर्मा जीवादिवस्तुनि १ सर्वसामान्येन २ तदभावेन च, ३ विशिष्टसामान्येन ४ तदभावेन, ५ विशिष्टसामान्येन ६ तदभावसामान्येन च, ७ विशिष्टसामान्येन ८ तद्विशेषणेन च, ९ सामान्यसामान्येन १० विशिष्टसामान्येन च ११ द्रव्यसामान्येन १२ गुणसामान्येन च १३ धर्मसमुदायेन १४ तव्यतिरेकेण च १५ धर्मसामान्यसम्बन्धेन १६ तदभावेन च १७ धर्मविशेषसम्बन्धेन १८ सदभावेन च निरूप्यन्ते । । ये प्रसिद्ध हो रहे अस्तित्व आदिक सातों धर्म तो जीव आदि वस्तुमें सबके सामान्यरूपसे और उस सर्व सामान्यके अभाव करके कहे जाते हैं (१) तथा विशिष्ट पदार्थके सामान्य करके और उसके अभाव करके कथन किये जाते हैं (२) एवं विशिष्टके सामान्य और उसके अभावके सामान्य करके कहे जाते हैं. (३) तथा विशिष्टके सामान्य और उसके विशेषण करके दो भंग बनाये जाते हैं (४) एवं सामान्यके सामान्य और विशिष्टके सामान्य करके भंग गढे जाते हैं (५) इसी प्रकार द्रव्यके सामान्य और गुणके सामान्य करके (६) धर्मके समुदाय और उससे भिन्नपने करके (७) तथा धर्म सामान्यके सम्बन्ध करके और उसके अभाव करके ८ एवं धर्मको विशेषसम्बन्ध और उसके अभाव करके ९ दो दो भंगोंको बनाकर अनेक प्रकारसे सात भंग कहे जा रहे हैं। - तत्रार्थप्रकरणसंभवलिंगौचित्यदेशकालाभिप्रायगम्यः शद्धस्यार्थः इत्यर्थाधनाश्रयणेऽ भिप्रायमात्रवशवर्तिना १ सर्वसामान्येन च वस्तुत्वेन जीवादिरस्त्येव २ तदभावेन चावस्तु
खेन नास्त्येवेति निरूप्यते। तथा श्रुत्युपात्तेन ३ विशिष्टसामान्येन जीवादित्वेनास्ति तत्सतियोगिना ४ तदभावेनाजीवादित्वेन नास्तीति च भंगद्वयम् । तेनैव ५ विशिष्टसामान्येनास्ति ६ तदभावसामान्येन वस्त्वन्तरात्मना सर्वेण सामान्येन नास्तीति च भंगद्वयं, तेनैव ७ विशिष्टसामान्येनास्ति. ८ तद्विशेषणमुख्यत्वेन नास्तीति भंगद्वयं, ९ सामान्याविशेषितेन द्रव्यत्वेनास्ति १० विशिष्टसामान्येन प्रतियोगिनैवाजीवादित्वेन नास्तीति च भंगद्वयं,