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________________ ४३२ तत्वार्थ लोकवार्तिके है । यहां यदि ही लगाकर अनिष्ट अर्थकी निवृत्ति न की जायगी तो कहना न कहना एकसा है । प्रायः सभी मनुष्य जल पीते हैं । अनेक बातोंका विचार कर उत्तर दिया जाता है, किन्तु यहां यह अर्थ अभीष्ट है कि अष्टमीको जल ही पीता है । अन्न हरित, औषधि आदि नहीं खाता है । विद्यार्थी सभी बातोंका विचारपूर्वक ही उत्तर देता है । अण्टसण्ट नहीं। इस प्रकार हीको कहनेवाले एव करके ही अन्य अनिष्ट अर्थकी व्यावृत्ति हो सकती है । अन्य कोई उपाय नहीं है । ननु गौरेवेत्यादिषु सत्यप्यवधारणेनिष्टार्थनिवृत्तेरभावादसत्यपि चैवकारे भावान्नावधारणसाध्यान्यनिवृत्तिस्तदन्वयव्यतिरेकानुविधानाभावात् । न ह्येवकारोऽनिष्टार्थनिष्वृतिं कुर्वन्नेत्रकारान्तरमपेक्षते अनवस्थाप्रसंगात् । तत्प्रयोगे प्रकरणादिभ्योऽनिष्टार्थनिवृत्तिरयुक्ता सर्वशदप्रयोगे तत एव तत्प्रसक्तस्ततो न तदर्थमवधारणं कर्त्तव्यमित्येके, तेऽपि न शद्वानायं विन्दन्ति । तत्र हि ये शद्बाः स्वार्थमात्रेऽनवधारिते संकेतितास्ते तदवधारणविवक्षायामेवकारमपेक्षन्ते तत्समुच्चयादिविवक्षायां तु चकारादिशद्वम्, न चैवमेवकारादीनामवधारणाद्यर्थ ब्रुवाणानां तदन्यनिवृत्तावेवकारान्तराद्यपेक्षा सम्भवति यतोऽनवस्था तेषां स्वयं द्योतकत्वात् द्योतकारान्तरानपेक्षत्वात् प्रदीपादिवत् । इसमें किन्हींको शंका है कि बैल ही है, भोजन ही है इत्यादि वाक्योंमें एवकार द्वारा नियम करनेपर भी अनिष्ट अर्थकी निवृत्ति नहीं हो रही है। जहां बैल खडा हुआ है, किसी अज्ञात पुरुष द्वारा पूंछनेपर बैल है या अतिथिके लिये भोजन तयार है । इसका जो अर्थ निकलता है, ही लगाकर भी वही अर्थ निकलता है । कोई अनिष्ट अर्थकी निवृत्ति नहीं की गयी है । अन्वय व्यभिचार हुआ तथा कहीं एवकारके नहीं होनेपर भी अन्य अनिष्ट अर्थसे निवृत्ति हो जाती है । देवदत्त व्याकरणको पढता है । भेदसे अणु उत्पन्न होता है, आदि स्थलोंमें ही को न लगाने पर भी नियम करना बन जाता है । यह व्यतिरेक व्यभिचार हुआ । अतः अन्य पदार्थोंसे निवृत्ति होना अवधारणसे ही साधने योग्य कार्य नहीं है । क्योंकि अन्य निवृत्तिका उस एवके साथ अन्वयव्यतिरेक धारण करना नहीं है । देखो ! एवकार भी अनिष्ट अर्थ की निवृत्तिको करता हुआ दूसरे एवकारकी तो नहीं अपेक्षा करता है । अन्यथा अनवस्थादोष होनेका प्रसंग होगा । अस्तिको ही की आवश्यकता है और हीको दूसरे हीकी तथा उसको भी तीसरे ही की इस प्रकार आकांक्षाएं बढती ही जावेंगी। हां! अनिष्ट अर्थकी निवृत्ति तो प्रकरण, अवसर, आदिकोंसे हो जाती है । यदि जैन इसके लिये एवकारका प्रयोग करोगे तो प्रकरण आदिसे अनिष्ट अर्थकी निवृत्ति होना अयुक्त पडेगा । सभी शद्वोंके प्रयोग करनेपर उस एवकारसे ही उस अनिष्ट अर्थकी निवृत्तिका प्रसंग होगा । लोकमें भी ऐसा ही देखा सुना जाता है । कोई भी सभी स्थल ( जगह ) में एवकारका पुञ्छल्ला नहीं लगाता है । तिस कारण उस अनिष्ट अर्थकी निवृत्तिके लिये 1
SR No.090496
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1951
Total Pages674
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
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