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तत्वार्थकोकवार्तिक
लेवेंगे। यदि पहिले पक्षके अनुसार आप बौद्ध यों कहें कि अपने अपने कारणोंसे किये गये अतिशयोंकी परमाणु अपेक्षा करते ही हैं, यानी जिन कारणोंसे परमाणु उत्पन्न होते हैं उन्हीं कारणोंसे जलाहरण, शीतापनोद आदिको उत्पन्न करानेघाले अतिशय भी उनमें साथ ही पैदा हो जाते हैं। ऐसा कहनेपर तो हम जैन फिर पूंछते हैं कि परमाणुओंमें उत्पन्न हुआ यह अतिशय क्या पदार्थ है । बताओ ! यदि तुम यों कहो कि अनेक परमाणुओंका वहीं अतिनिकट समानदेशवाली होकर उत्पन्न हो जाना अतिशय है, ऐसा कहनेपर तो फिर हम पूंछेगे कि उन परमाणुओंका समान देशयान्पना क्या है । इसपर आप बौद्ध यदि यों उत्तर देंगे कि वस्तुतः प्रत्येक परमाणु न्यारे न्यारे ही देशमें रहती हैं। अतः सम्पूर्ण परमाणुयें भिन्न भिन्न देशोंमें उत्पन्न हो रहीं मानी गयी हैं, किन्तु जलधारण, छतको धारण आदि अर्थक्रियाओंके लिये उपयोगी उन परमाणुओंका व्यवधान रहित सदृश देशोंमें उत्पन्न हो जाना ही उनकी समानदेशता है । अन्य नहीं। जैसे ही एक देशमें बैठा हुआ परमाणु उस अर्थक्रियामें उपयुक्त हो रहा है । तिस सरीखे दूसरे अव्यवहित देशमें भी बैठे हुए दूसरे भी परमाणुऐं उस ही अर्थक्रियामें उपयोग करते हुए समान देशवाले कहे जाते हैं । केवल एक ही देशमें वर्तते हुए परमाणु ही फिर समानदेशवाले नहीं कहे जाते हैं, क्योंकि विरोध है। यानी समानदेश और एकदेशमें भारी अन्तर है । उस ही एक आधारको एकदेश कहते हैं और उसके समान दूसरे देशोंमें रहनेपर समानदेश कहे जाते हैं । मूर्त एक परमाणु जब एक प्रदेशको घेर लेवेगी तो वहां दूसरे परमाणुके ठहरनेका विरोध है । " मूर्तयोरेकदेशताविरोधात् "। जैनोंके समान हम एक प्रदेशपर अनन्त परमाणुओंको बैठा हुआ नहीं स्वीकार करते हैं। यदि एक प्रदेशमें अनेक परमाणु स्थित हो जावेंगी तो सम्पूर्ण परमाणुओंको केवल एक परमाणुरूप हो जानेका प्रसंग होगा । जिस स्थानपर एक ही घट समा सकता है, वहां यदि दो, तीन, घटोंकी सत्ता मानोगे तो दो, तीनका ठीक अर्थ एक ही समझा जावेगा । एक घडेके नीचे मध्य या ऊपरी भागमें दूसरे घडेका सम्बन्ध हो जानेसे तैरानेके लिये दुघडा या चौघडा बन जाता है। यदि एक घडा दूसरे घडेमें ऊपर, नीचे, मध्य, ग्रीवा, पेट, आदि सम्पूर्ण अवयवोंसे सर्वाङ्गीण संयुक्त हो जावेगा तो दो, चार, तो क्या बीस, पचास, घडे भी मिला देनेपर एक घडेके बरोबर ही रहेंगे । जब कि परमाणु अपने सम्पूर्ण स्वरूपसे परस्पर एक दूसरेमें प्रविष्ट हो जायेंगी तो अनेक परमाणुओंका पिण्ड भी एक परमाणुरूप हो जावेगा यह स्पष्ट है । अन्यथा परमाणुओंका एकदेशपना न बन सकेगा। भावार्थआप जैनोंने भी परमाणुओंको एकप्रदेशी कहा है। हां ! यदि परमाणुफे अनेक प्रदेश होते तो भिन्न भिन्न प्रदेशोंसे संयुक्त होकर अनेक परमाणुओंका एक बडा अवयवी बन सकता था, किन्तु परमाणुको एकप्रदेशी माननेपर एक प्रदेशमें अनेक परमाणुओंकी रक्षा नहीं हो सकती है । इस प्रकार बौद्धोंके कहनेपर तो हम जैन पूछते हैं कि यह अनेक परमाणुओं करके साधारणरूपसे हुयी एक जलाहरण आदि अर्थक्रिया भला क्या है ? जिसमें कि उपयोगी हो रहे मिन्न भिन्न देशमें वर्तते